क्लीनिकल परीक्षण के अभाव में दुर्लभ बीमारियों का इलाज नहीं टाल सकते : हाईकोर्ट

द ब्लाट न्यूज़ । उच्च न्यायालय ने कहा है कि लंबे समय तक क्लीनिकल परीक्षण अध्ययन की अनुपलब्धता के कारण दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों के इलाज को न तो रोका जा सकता है और न ही टाला जा सकता है। न्यायालय ने एम्स की विशेषज्ञ समिति की ओर से पेश रिपोर्ट पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की है। एम्स की विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि मौजूदा दवा दुर्लभ बीमारियों को बढ़ने से रोकेगी।

जस्टिस यशवंत वर्मा के समक्ष पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा दवा के इस्तेमाल से दीर्घकालिक परिणाम भी अज्ञात हैं। इस पर अदालत ने कहा कि लंबे समय तक नैदानिक परीक्षण अध्ययन के परिणाम की अनुपलब्धता या पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने के आधार पर दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों के इलाज को न तो रोका जा सकता है और न ही टाला जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि जहां तक इन दुर्लभ बीमारियों का संबंध है, निश्चित रूप से आधिकारिक शोध सामग्री की कमी है, जो मौजूदा समय में इलाज के लिए अपनाए जा रहे प्रोटोकॉल के दीर्घकालिक परिणाम को स्थापित कर सकती है। हालांकि, न्यायालय ने कहा है कि यह मरीजों के उन उपचार विकल्पों से गुजरने के अधिकार से कम नहीं होना चाहिए, जो वर्तमान में उपलब्ध हैं और दुनियाभर में इस तरह की बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किए जा रहे हैं, भले ही उन्हें प्रायोगिक उपचार के रूप में देखा जाए।

डीएमडी, हंटर सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों ने याचिका दायर की है

उच्च न्यायालय में ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी), हंटर सिंड्रोम जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल और कुमार उत्कर्ष ने याचिका दाखिल की है। याचिका में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों के निशुल्क इलाज की मांग की गई है। पिछली सुनवाई पर न्यायालय ने एम्स को बच्चों का निशुल्क इलाज शुरू करने का आदेश दिया था। इस मामले में न्यायालय ने न्याय मित्र नियुक्त किए गए अधिवक्ता को अगली सुनवाई पर मौजूद रहने और अपना सुझाव देने को कहा है।

20 लाख नहीं, 50 लाख तक खर्च कर रहे : केंद्र

केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया है कि दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज पर अब 50 लाख रुपये तक सहायता राशि दी जा रही है। सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय दुर्लभ बीमारी नीति (एनपीआरडी) 2021 में संशोधन कर कर इलाज खर्च की सीमा को 50 लाख रुपये तक कर दिया गया है। पहले इन बीमारियों के इलाज पर सिर्फ 20 लाख रुपये तक की सहायता सरकार देती थी। मरीजों की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने इसका विरोध किया और कहा कि सरकार इलाज खर्च की सीमा तय नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि वह इलाज खर्च की सीमा तय किए जाने को चुनौती देंगे।

 

 

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