दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन का नया पैंतरा सामने आया है। क्वाड सम्मेलन के दौरान इंडो-पैसिफ़िक इकोनामिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) पर समझौते के बाद चीन तिलमिला गया है। इसके बाद चीन ने अपनी कूटनीति को धार देना शुरू कर दिया है। इस क्रम में उसने वहां के तीन प्रमुख देशों की नई सरकारों पर डोरे डालना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञ इसको इसी कड़ी से जोड़कर देख रहे हैं। आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस में नई सरकारों के साथ चीन अपने संबंधों को सुधारने को लेकर इच्छुक है। चीनी विदेश मंत्री की हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों के भ्रमण को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि दक्षिण कोरिया से लेकर फिजी तक चीन और अमेरिका के बीच वर्चस्व की प्रतियोगिता और गहरी होगी। आइए, जानते हैं कि इस सारे मामलों पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक जंग तेज हो गई है। खासकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी की हिंद प्रशांत देशों के दौरे के बाद चीन ने अपनी कूटनीति को धार देना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि आईपीईएफ में शामिल 13 देशों में आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस में नई सरकारें सत्ता में आई हैं। तीन मुल्कों में सत्ता परिवर्तन के बाद चीन के साथ उनके संबंधों के नए समीकरणों को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन ने आस्ट्रेलिया में नई सरकार से उम्मीद की है कि वह चीन के प्रति तर्कसंगत रवैया अपनाएंगे। चीन ने कहा है कि आस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज चीन विरोधी नीति का त्याग करेंगे। चीन ने कहा इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री स्काट मारिसन की चीन विरोधी नीति रही है।
2- प्रो पंत का कहना है कि उधर, दक्षिण कोरिया में सत्ता परिवर्तन के बाद चीन की नजर नए राष्ट्रपति यून सुक योल पर टिकी है। चीन ने सुक योल से दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों की उम्मीद जताई है। चीन ने यह भरोसा जताया है कि सुक योल चीन के साथ बेहद सुचारू रूस से सकारात्मक रिश्तों को आगे बढ़ाएंगे। बता दें कि 10 मई को शपथ लेने के बाद सुक योल ने क्वाड संगठन में हिस्सा लिया था। दक्षिण कोरिया ने अमेरिका की आईपीईएफ में शामिल होकर चीन को यह संकेत दिया है कि दक्षिण कोरिया में सत्ता परिवर्तन से उसकी विदेश नीति पर कोई असर नहीं पड़ा है। आईपीईएफ में शामिल होने के बाद दक्षिण कोरिया में चीन के राजदूत शिंग हेमिंग ने इस फैसले की निंदा की थी। हेमिंग ने कहा था कि चीन को आद्यौगिक और सप्लाई चेन से बाहर रखना कानून और बाजार के हितों के खिलाफ है। चीन ने दक्षिण कोरिया से आग्रह किया था कि वह वन चाइना के सिद्धांत के साथ ही रहें।
3- इसी तरह फिलीपींस में सत्ता परिवर्तन का स्वागत करते हुए चीन ने कहा कि यह दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए अच्छे संकेत हैं। चीन ने यह उम्मीद जताई है कि फर्डिनेंड मार्कोस जुनियर के नेतृत्व में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध नई ऊंचाईयों की ओर जाएंगे। बता दें कि नौ मई को फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर देश के नए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। हालांकि, मार्कोस ने सत्ता ग्रहण करने के बाद दक्षिण चीन सागर पर वर्ष 2016 के अंतरराष्ट्रीय फैसले को लागू करने का वादा किया है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से चीन को चेतावनी दी है कि वह अपनी समुद्री सीमा के अधिकारों में एक मिलिमीटर भी दखल नहीं देने देंगे। मार्कोस की इस कठोर टिप्पणी पर चीन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह चीन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। अलबत्ता चीन ने कहा है कि वह वार्ता के जरिए मतभेदों को सुलझाने की कोशिश करेगा। इस दौरान मार्कोस ने यह भी कहा था कि वह चीन के साथ जंग नहीं लड़ सकता। चीन ने मार्कोस की इस बात को प्रमुखता से जगह दी थी।
आईपीईएफ पर ग्लोबल टाइम्स की नजर
चीन के ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि अमेरिका अपनी हिंद प्रशांत रणनीति के तहत चीन को सीमित करने की कोशिश में जुटा है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका अब अपनी रणनीति में सफल नहीं होगा। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अब चीन के इस क्षेत्र में कदम सर्वव्यापी है, इससे अमेरिका की चीन को सीमित करने की रणनीति फेल हो रही है। हालांकि, चीन के इस दावे के बीच ड्रैगन और प्रशांत क्षेत्र के द्वीप देशों के विदेश मंत्रियों के बीच 30 मई को हुई बैठक में किसी क्षेत्रीय समझौते पर नहीं पहुंचा जा सका था। चीन विदेश मंत्री वांग ने इस बैठक में शामिल हो रहे सहयोगियों से अपील की थी कि वो चीन के लक्ष्य को लेकर चिंता न करें और उन्होंने कहा था कि चीन और विकासशील देशों का साझा विकास दुनिया को अधिक निष्पक्ष, सामंजस्यपूर्ण और स्थिर बना देगा। खास बात यह है कि इससे तीन दिन पहले फिजी ने घोषणा की थी कि वह आईपीईएफ में शामिल होगा। अमेरिका के इस समझौते में शामिल होने वाला प्रशांत क्षेत्र का वह पहला देश था।