द ब्लाट न्यूज़ । कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने एक अंतरिम आदेश में नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निपटारे के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
अदालत द्वारा जारी 17 दिशा-निर्देशों में गंभीर आपराधिक मामलों की जांच के लिए 90 दिनों की समयसीमा के निर्धारण के अलावा शिकायतकर्ताओं के जीवन और हितों की रक्षा के लिए गवाह संरक्षण योजना का कार्यान्वयन भी शामिल है।
न्यायमूर्ति एस सुनील दत्त यादव ने मामूली अपराधों की जांच के लिए 60 दिन, जबकि गंभीर एवं जघन्य अपराधों की तफ्तीश के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय की है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया है कि जांच एजेंसी अगर वैध कारणों से निर्धारित अवधि में विस्तार चाहती है तो मजिस्ट्रेट और न्यायाधीश समयसीमा बढ़ा सकते हैं।
सत्रह मई को जारी अंतरिम आदेश सुजीत मुलगुंड की याचिका पर आया, जिन्होंने बेलगाम दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से दो बार के विधायक अभय कुमार पाटिल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। शिकायत में पाटिल की कथित तौर पर आय से अधिक संपत्ति की जांच करने की मांग की गई थी।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि शिकायत दर्ज कराने के समय से ही उसे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। मुलगुंड ने कहा था कि पाटिल और उनके गुर्गे कथित तौर पर उन्हें शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं। मुलगुंड ने पाटिल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर एक निजी शिकायत दर्ज कराई थी।
मामले में अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि शिकायत मूल रूप से 2012 में दर्ज कराई गई थी, लेकिन आज तक इसकी जांच कर रही पुलिस द्वारा कोई आरोपपत्र दायर नहीं किया गया है। मामले की जांच अब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की बेलगावी इकाई द्वारा की जा रही है।
आदेश में शामिल एक अन्य दिशा-निर्देश के तहत अदालत ने कहा है कि पुलिस को जांच में आरोपी द्वारा किए जाने वाले हस्तक्षेप और तफ्तीश में पेश आ रही बाधाओं के बारे में मजिस्ट्रेट को सूचित करना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने विशेष जांच शाखा की स्थापना और आवश्यक प्रशिक्षण वाले कर्मचारियों को भी तैयार करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, राज्य से कहा गया है कि वह विशेष अदालतों में ऐसे लोक अभियोजकों की नियुक्ति करे, जो इस तरह के मामलों को संभालने में सक्षम हों।
अदालत ने कर्नाटक में मौजूद उन परिसरों की सूची पेश करने का भी निर्देश दिया है, जो गवाहों के लिए संवेदनशील हैं। आदेश में कहा गया है कि राज्य को जल्द से जल्द दूसरी विशेष अदालत की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी देनी चाहिए।