उमर खालिद की जमानत याचिका पर होगी सुनवाई…

द ब्लाट न्यूज़ । दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली हिंसा की साजिश रचने के मामले के आरोपित उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई टाल दी है। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच ने उमर खालिद की जमानत याचिका पर 19 मई को सुनवाई करने का आदेश दिया।

सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा कि पहले उन्हें दलीलें रखने का मौका दिया जाए उसके बाद उमर खालिद की ओर से त्रिदिप पायस को दलीलें रखने दिया जाए। तब जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने कहा कि आप इसे ट्रायल की तरह चलाना चाहते हैं। पहले अभियोजन शुरू करता है। बाद में बचाव पक्ष दलीलें देता है। ये पायस के लिए आसान भी होगा। इस पर पायस ने कहा कि हम चाहते हैं कि उमर खालिद का मामला शरजील इमाम से अलग किया जाए।

जस्टिस मृदुल ने कहा कि आप इसके हकदार हैं लेकिन ये बात ध्यान में रखिए कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप है कि वो साजिश में शामिल था। तब पायस ने कहा कि हम बताएंगे कि उमर खालिद के खिलाफ जो आरोप है वो मनगढ़ंत हैं। जस्टिस मृदुल ने पूछा कि आप दलील रखने में कितना समय लेंगे तो पायस ने कहा कि कम से कम दो घंटे। तब जस्टिस मृदुल ने कहा कि अगले हफ्ते हम लिस्ट नहीं कर सकते हैं। इस मामले पर 19 मई को सुनवाई होगी।

सुनवाई के दौरान 27 अप्रैल को जस्टिस रजनीश भटनागर ने उमर खालिद के वकील त्रिदीप पायस से पूछा था कि क्या देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल उचित है। तब पायस ने कहा था कि सरकार या सरकार की नीतियों की आलोचना करना गैरकानूनी नहीं है। सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है। जस्टिस भटनागर ने उमर खालिद के भाषण में चंगा शब्द के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाया था तब पायस ने कहा था कि यह व्यंग्य है। सब चंगा सी का इस्तेमाल शायद प्रधानमंत्री के दिए गए भाषण के लिए किया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं हो सकता है। यूएपीए के आरोपों के साथ 583 दिनों की जेल की कल्पना सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के लिए नहीं की गई थी। हम इतने असहिष्णु नहीं हो सकते हैं। तब जस्टिस भटनागर ने कहा था कि आलोचना की भी एक सीमा होनी, एक लक्ष्मण भी होनी चाहिए।

पायस ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अपने आप में हिंसा का आह्वान नहीं करता है। दिल्ली हिंसा के किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा है कि उन्हें हिंसा के लिए उकसाया गया था। केवल दो गवाहों ने इस भाषण क सुनने का हवाला दिया। वे कहते हैं कि वे भाषण से उत्तेजित नहीं थे। उन्होंने कहा कि दंगों से कुछ हफ्ते पहले अमरावती में भाषण दिया गया था और खालिद दंगों के दौरान दिल्ली में मौजूद नहीं थे।

हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल को उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि प्रथम दृष्टया उमर खालिद के भाषण सही नहीं प्रतीत होते हैं। कोर्ट ने कहा था कि उमर खालिद ने अमरावती में जो भाषण दिया उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है। सुनवाई के दौरान त्रिदीप पायस से कोर्ट ने पूछा था कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप क्या हैं तो उन्होंने कहा था कि साजिश रचने का। 24 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दिया था।

दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा के आरोपित उमर खालिद समेत दूसरे आरोपितों की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में टेरर फंडिंग हुई थी। स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा कि इस मामले के आरोपित ताहिर हुसैन ने काला धन को सफेद करने का काम दिया। अमित प्रसाद ने कहा था कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हुई। इस मामले में 755 एफआईआर दर्ज किए गए हैं। उमर खालिद को 13 सितंबर 2020 को पूछताछ के बाद स्पेशल सेल ने गिरफ्तार कर लिया था। 17 सितंबर 2020 को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की ओर से दायर चार्जशीट पर संज्ञान लिया था। 16 सितंबर 2020 को स्पेशल सेल ने चार्जशीट दाखिल की थी।

 

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