द ब्लाट न्यूज़ । दिल्ली हाईकोर्ट ने एलोपैथी, आयुर्वेद, योग एवं होम्योपैथी आदि इलाज की अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों के बजाय मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस की एक समग्र भारतीय समन्वित प्रणाली अपनाने पर बुधवार को केंद्र से अपना पक्ष रखने को कहा। न्यायालय ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर दिया है।
याचिका में सरकार को मरीजों के इलाज के लिए चिकित्सा के विभिन्न तरीकों के बजाय चिकित्सा शिक्षा और अभ्यास के क्षेत्र में भारतीय समग्र एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने का आदेश देने की मांग की गई है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने कहा कि यह नीतिगत मसला है। ऐसे में हम केंद्र सरकार को इसे बतौर प्रतिवेदन लेने व इसमें उठाए गए मुद्दों पर विचार करने के लिए कहेंगे। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि यह नीतिगत नहीं बल्कि देश के संविधान से संबद्ध है। इसके बाद पीठ ने सरकार को याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार करने व आठ सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी।
याचिका में दावा किया है कि चिकित्सा क्षेत्र में एक समग्र रुख अपनाया जाना चाहिए, जिसमें शिक्षा, प्रशिक्षण, प्रैक्टिस और नीतियों व नियमन के स्तर पर आधुनिक व पारंपरिक औषधि का संयोजन हो, वह संविधान के अनुच्छेद 21,39(ई),41,43,47,48(ए)51ए के तहत प्रदत्त स्वास्थ्य के अधिकार को सुरक्षित करेगा। साथ ही यह देश के स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में चिकित्सा-जनसंख्या अनुपात को बेहतर बनाएगा। याचिका में कहा गया है, हमारे पास मेडिकल पेशेवरों का एक वैकल्पिक कार्यबल है, जिन्हें सरकार ने हमेशा ही नजरअंदाज किया है। वे हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सहायता करने में सक्षम हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा कि चीन, जापान, जर्मनी समेत कई देशों में समन्वित स्वास्थ्य प्रणाली उपलब्ध है। उन्होंने दावा किया कि सभी चिकित्सा प्रणालियों के समन्वय से मरीजों को लाभ होगा। याचिका के अनुसार, देश में आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी (एयूएच) के 7.88 लाख डॉक्टर हैं। अनुमान है कि इनमें से 80 फीसदी यानी 6.30 लाख डॉक्टर सेवा के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। ये एलोपैथ डॉक्टरों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।