वर्ष 2022 के लिए विश्व विरासत दिवस का विषय ‘धरोहर और जलवायु’ है। इस थीम के चुनाव की वजह यह है कि मौजूदा दौर में बदलती जीवनशैली और दूषित होते पर्यावरण का व्यापक प्रभाव स्थानीय जनजीवन पर पड़ रहा है। बदलते पर्यावरण के चलते आने वाली प्राकृतिक आपदाएं जैसे-बाढ़, भूकंप, सूखा और आंधी-तूफान विरासत स्थलों को नुकसान पहुंचा रही हैं। ऐसे में पर्यावरण को सहेजना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी धरोहर को भी बचाता है।
हमारे देश में ऐसी कई ऐतिहासिक धरोहर और भ्रमण स्थल हैं, जो हमारी प्राचीन संस्कृति और परंपरा के प्रतीक हैं, पर आमजन और सरकारी उदासीनता के साथ ही प्रदूषण के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन भी अब हमारी विरासत के लिए संकट बन रहा है। कहीं बढ़ता समुद्री जल स्तर तो कहीं मरुस्थलीय विस्तार, कहीं वनों की अंधाधुंध कटाई तो कहीं पहाड़ी क्षेत्रों में विस्तार पाते मानव निर्मित कंक्रीट के जंगल, कभी अति वृष्टि तो कहीं पर्यावरण में घुलती जहरीली गैसें-कमोबेश सभी मानवीय गतिविधियां समग्र रूप से जलवायु परिवर्तन का कारण बन हमारी धरोहर को भी हानि पहुंचा रही हैं।

दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित विश्व धरोहर घोषित किए गए हेंडर्सन द्वीप जैसे निर्जन स्थान के समुद्र तटों पर भी 17.6 टन कचरा पहुंच गया है। चिंतनीय यह भी है कि धरती के बढ़ते तापमान के चलते ऐसे स्थलों का जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है। हमारे यहां बंगाल की खाड़ी के बढ़ते जलस्तर के कारण सुंदरवन के कई द्वीप समुद्र में डूब चुके हैं।
गौरतलब है कि भारत में तटीय क्षेत्रों में कई धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की धरोहर मौजूद हैं। इनमें कई मंदिर, औपनिवेशिक युग की इमारतें और ऐतिहासिक किले भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप ग्लेशियरों के पिघलने के चलते इक्कीसवीं शताब्दी के अंत तक दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो जाने की चिंताएं खड़ी हो गई हैं। इतना ही नहीं, बढ़ते तापमान के कारण यूरोप के विज्ञानियों ने चूना पत्थर के क्षय में तेजी आने की बात भी कही है। गौरतलब है कि दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित इमारतें चूना पत्थर से ही बनी हैं। भारत में भी बढ़ता वायु प्रदूषण कई विरासत स्थलों की दीवारों पर दुष्प्रभाव डाल रहा है। ऐसे में कहना गलत नहीं कि धरा को बचाना आज और आने कल को ही नहीं, बल्कि बीते कल की विरासत को संरक्षित रखने में भी मददगार बन सकता है।
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