द ब्लाट न्यूज़ । यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच यूक्रेन के किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। एक तरफ बुवाई का मौसम शुरू हो चुका है, लेकिन खेतों में बमबारी हो रही है। खतरा उठा भी लिया जाए, लेकिन घर के पुरुष सदस्य युद्ध में भाग ले रहे हैं। दुनिया को अनाज देने वाले यूक्रेन के खेतों में शायद ही इस बार फसल तैयार हो।
पावलोविच परिवार के सैनिक बेटे रोमन को पिछले सप्ताह रूसी सैनिकों ने मार डाला। रोमन के पिता बेटे की मौत के बाद खुद युद्ध में उतर गए हैं। घर पर सिर्फ मारिया बची हैं, जो शहीद हुए बेटे के कमरे में बैठकर सिर्फ आंसू बहा सकती हैं। मारिया का कहना है कि हम न केवल अपने देश बल्कि दुनिया को अनाज देते थे, लेकिन इस लड़ाई में हम खेती नहीं कर पाएंगे। ज्ञात रहे कि यूक्रेन और रूस विश्व को एक तिहाई अनाज का निर्यात करते हैं। इनके सबसे बड़े खरीदार उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व एशिया के कुछ देश हैं। इस युद्ध से इंडोनेशिया, मिस्र, यमन, लेबनान को भारी मार पड़ेगी क्योंकि ये देश यूक्रेन के गेहूं के बड़े खरीदार हैं और यहां भोजन की कमी की आशंका हैं। युद्ध के कारण यूक्रेन के किसानों को खाद, बीज, उर्वरक, कृषि उपकरण तो मिलना बंद ही हो गए हैं, सबसे ज्यादा परेशानी ईंधन न मिलने से हो रही है। किसान खतरा मोल लेते हुए खेती शुरू भी करें, लेकिन समस्याएं इतनी हैं कि इस बार यूक्रेन के खेत गेहूं नहीं उपजा पाएंगे। किसान एल्फोस का कहना कि रूसी बमबारी और तोपों से बरस रहे गोलों के बीच हम कैसे बुवाई करें। दुश्मन खेतों को निशाना बना रहा है, हम ये नहीं जानते कि हमारे पास कौन सी फसल होगी और हम क्या निर्यात कर पाएंगे। वहीं कई किसान ऐसे हैं, जिनके घर में किसी न किसी सदस्य की मौत रूसी हमलों में हो गई है और वहां मातम पसरा है। मातम के बीच खेती करना मुश्किल है।
क्षेत्रीय कृषि संघ के प्रमुख इवान किलगन का कहना है कि हमने पोलैंड की सीमा के पास उत्तर-पश्चिम लीव क्षेत्र और दक्षिण यूक्रेन में किसानों से फसल उगाने का निवेदन किया है क्योंकि ये क्षेत्र अभी तक युद्ध की गंभीर स्थिति से बचा हुआ है। यहां हर साल 1.60 करोड़ टन अनाज का उत्पादन होता है, लेकिन इस साल युद्ध के कारण यहां उत्पादन करीब आधा रहने की उम्मीद है। उधर इलिनोएस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अर्बाना का कहना है कि युद्ध के कारण गेहूं और मकई की फसल में भारी गिरावट आएगी। कटाई के लिए लोग उपलब्ध नहीं है, तो फसल प्रभावित होगीं।