द ब्लाट न्यूज़ । रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को संसद में कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों (डीपीएसयू) को कमजोर किए जाने का सवाल ही नहीं है और सरकार ऐसे उपक्रमों को अंशपूंजी (इक्विटी) मदद देकर उन्हें मजबूत बनाने का प्रयास कर रही है।
सिंह ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि डीपीएसयू को कमजोर करने का सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार एक ओर ऐसे उपक्रमों को अंशपूंजी मदद दे रही है वहीं उनकी प्रतिबद्ध देनदारी को भी दूरी कर रही है।
सरकार के विभिन्न कदमों से ऐसे उपक्रमों के कमजोर होने की विपक्ष की आशंका का खारिज करते हुए रक्षा मंत्री सिंह ने कहा कि उच्च स्तरीय 80 प्रतिशत आदेश अब भी डीपीएसयू को दिए जा रहे हैं और उन्हें किसी भी सूरत में कमजोर नहीं किया जा रहा।
इससे पहले सवाल से जुड़े लिखित जवाब में सिंह ने कहा कि रक्षा क्षेत्र उच्च स्तर की प्रौद्योगिकियों और नवोन्मेष से संचालित होता है तथा इस क्षेत्र को रक्षा साजो सामान व उत्पादों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए क्षमता वृद्धि हेतु लगातार निवेश और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तथा विनिर्माण सुविधाओं के सृजन की आवश्यकता है।
सिंह ने कहा कि सरकार ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत रक्षा उत्पादों के स्वदेशीकरण और निर्यात संवर्धन को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है तथा घरेलू उद्योग द्वारा ऐसी क्षमताएं विकसित करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लेकिन जिन क्षेत्र में ऐसी क्षमताओं का अभाव है, वैश्विक ‘ओईएम’ द्वारा प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) से अंतर कम करने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही एफडीआई के परिणामस्वरूप बचत करने और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के अलावा आर्थिक अवसर भी सृजित होते हैं।
उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में एफडीआई को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 2020 में एफडीआई नीति को उदारीकृत बनाया जिसमे ‘ऑटोमेटिक रूट’ के जरिए 74 प्रतिशत तक एफडीआई और सरकारी ‘रूट’ के जरिए 74 से 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गयी है।
उन्होंने कहा कि ऐसा करते समय यह सुनिश्चित करने के लिए समुचित उपाय किए जाते हैं कि देश के सुरक्षा और सामरिक हितों के साथ कोई समझौता नहीं हो। उन्होंने कहा कि 2001-2014 के दौरान करीब 1,382 करोड़ रुपये का एफडीआई हुआ और 2014 से आज तक करीब 3,343 करोड़ रुपये का एफडीआई मिला है।