भारत ने चुनावों में समावेशी भागीदारी सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय दूरी तय की है : सीईसी चंद्रा

नई दिल्ली । मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) सुशील चंद्रा ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय लोकतंत्र ने पहले लोकसभा चुनावों के बाद से एक उल्लेखनीय दूरी तय की है और आज सात दशक और 17 आम चुनावों के बाद मताधिकार का प्रयोग करने में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक हो गई है।

उन्होंने कहा कि जब सभी वर्ग के लोगों का पूर्ण प्रतिनिधित्व होता है तो लोकतंत्र व लोकतांत्रिक संस्थान फलते-फूलते हैं।

यहां ‘महिलाओं, दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों की चुनावी भागीदारी में वृद्धि’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित करते हुए चंद्रा ने कहा कि कैसे चुनाव आयोग ने महिलाओं, दिव्यांगों, वरिष्ठ नागरिकों और ट्रांसजेंडर लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए।

उन्होंने कहा कि ज्यादातर देशों और क्षेत्रों में महिलाओं को टुकड़ों में वोट देने का अधिकार मिला। उन्होंने उल्लेख किया कि महिलाओं को समान मताधिकार देने में अमेरिका को 144 साल लग गए। भारत में आजादी के साल से ही महिलाओं को मत देने का अधिकार हासिल था।

उन्होंने कहा, हालांकि इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई भारतीय महिलाओं ने मतदान के समान अधिकार के लिए अभियान चलाया। उन्होंने कहा कि भारतीय मताधिकार आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में अधिक से अधिक महिलाओं की भागीदारी के साथ गति पकड़ी।

उन्होंने याद किया कि जमीनी स्तर पर महिलाओं को मतदान का अधिकार देते समय वास्तविक चुनौती पेश आई, जब बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया और फलाने की पत्नी या फलाने की मां के तौर पर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहती थीं।

उन्होंने बताया कि निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी करना पड़ा कि नाम पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा है और महिला मतदाताओं को अपने नाम का पंजीकरण कराना चाहिए। सार्वजनिक अपीलें की गईं और महिला मतदाताओं को पंजीकरण कराने में सक्षम बनाने के लिए अभियान को एक महीने का विस्तार दिया गया।

उन्होंने कहा कि 1951-52 में इस देश के पहले आम चुनाव में, निर्वाचन आयोग ने महिला मतदाताओं की सुविधा के लिए विशेष उपाय किए। महिला मतदाताओं को सहज महसूस कराने के लिए प्रत्येक मतदान केंद्र पर कम से कम एक महिला को मतदान कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था।

उन्होंने कहा कि ‘पर्दानशीं’ या बुर्का पहनने वाली महिलाओं की मुश्किलों को देखते हुए अलग महिला बूथ स्थापित किए गए और ऐसे 27,527 मतदान केंद्र आरक्षित किए गए, जहां सभी निर्वाचन कर्मी महिलाएं थीं।

चंद्रा ने कहा, “हमने तब से अब तक उल्लेखनीय दूरी तय की है। आज, आजादी के बाद से सात दशकों और 17 आम चुनावों में, भारत में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक हो गई है और 2019 के आम चुनाव में उनकी भागीदारी 67 प्रतिशत से अधिक थी।”

उन्होंने कहा, “लैंगिक अंतर, एक महत्वपूर्ण मानदंड है, जो 1962 में शून्य से 16.71 प्रतिशत नीचे था, न केवल बंद हुआ है, बल्कि 2019 में 0.17 प्रतिशत से अधिक हो गया है। भारत में 1971 के चुनावों के बाद से महिला मतदाताओं में 235.72 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।”

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि लैंगिक परिभाषाओं पर समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए आयोग ने एक प्रावधान शामिल किया, जिसके तहत ट्रांसजेंडरों के पास मतदाता सूची में ‘तीसरे लिंग’ के रूप में पंजीकरण कराने का विकल्प था।

सीईसी ने कहा कि 2019 के चुनावों में करीब 40,000 लोगों ने खुद को तीसरे लिंग के रूप में पंजीकृत कराया।

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