अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने “भारतीय समाज कार्य दिवस” के रूप में मनाई नानाजी की जयंती

– गांधी के ग्राम स्वराज्य की राह में नानाजी का काम मील का पत्थर साबित हुआ – अभय महाजन

चित्रकूट। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के तत्वाधान में राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर भारत के नवनिर्माण के विचार और प्रयोग विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का वर्चुअली रूप से आयोजन किया गया। हिंदी विश्वविद्यालय की ओर से इन दोनों महापुरुषों की जयंती को भारतीय समाज कार्य दिवस के रूप में मनाया गया।

सोमवार को आयोजित इस कार्यक्रम में चित्रकूट से वर्चुअल जुड़कर अपने आतिथ्य उद्बोधन में दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने कहा कि नाना जी ने अपने जीवन के अंतिम 20 वर्षों 1990 से लेकर 2010 तक चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने समाज जीवन के विभिन्न रचनात्मक प्रयोग किए, उनके प्रयोग एवं प्रशस्त मार्ग पर ही दीनदयाल शोध संस्थान के सब कार्यकर्ता आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।

श्री महाजन ने कहा कि जयप्रकाश नारायण विजनरी थे, नानाजी मिशनरी। दोनों ने ही लोकनीति को राजनीति से ऊपर रखा। जेपी संपूर्ण क्रांति के उद्घोषक थे, तो नानाजी इसके प्रचारक। दोनों एक दूसरे के लिए अपरिहार्य थे। सन् 74 के पटना आंदोलन में जब पुलिस की लाठी जेपी पर उठी, तो उसे नानाजी झेल गए। वही लाठी फिर इंदिरा गांधी के निरंकुश शासन से मुक्ति की वजह बनी। नानाजी ने 60 बरस की उम्र होने पर सक्रिय राजनीति छोड़कर सामाजिक पुनर्रचना के काम में स्वयं को समर्पित कर देश के राजनीतिज्ञों के लिए एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। नानाजी के बहुआयामी व्यक्तित्व को टुकड़ों में बांट कर नहीं देखा जा सकता। मानव जीवन में जिस समग्रता के वे आग्रही थे, उन्हें भी उसी समग्रता से देखने की आवश्यकता है। उनके जीवन के हर आयाम, हर पहलू को आने वाली पीढ़ी के समक्ष रखने की जरूरत है।

महाजन ने कहा कि नाना जी ने 1980 में सत्ता और वोट राजनीति के आकर्षण को ठुकरा कर सामाजिक-आर्थिक विषमताओं से मुक्त एवं भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित सशक्त, समृद्ध एवं गतिमान भारत के नवनिर्माण का प्रादर्श विकसित करने के लिए गांवों की ओर रुख किया। सर्वप्रथम गोंडा उत्तर प्रदेश में ग्रामीण विकास और स्वावलंबन के क्षेत्र में अभिनव प्रयोग आरंभ किए। वर्ष 1991 में उन्होंने चित्रकूट में देश के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी और संस्थापक कुलाधिपति बने। इसी वर्ष उन्होंने आजीवन स्वास्थ्य की शास्त्रीय संकल्पना पर केंद्रित आरोग्यधाम की भी स्थापना चित्रकूट में की।

इसके बाद उद्यमिता विद्यापीठ, नन्ही दुनिया और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए विद्यालय खोले। महाराष्ट्र के बीड़ जिले में भी ग्रामीण विकास का कार्य शुरू हुआ। उनके द्वारा स्थापित कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से खेती में सबसे पिछड़े इलाके में हरित क्रांति आई। गौ संवर्धन और जैविक खेती के प्रयोग सर्वत्र चर्चा का विषय बने। नानाजी का मानना था कि गांव की खुशहाली के लिए ना तो सरकार की और ताकने जरूरत है और ना ही विदेशी निवेश पर निर्भर होने की आवश्यकता है। बस जरूरत है आम आदमी के सोए हुए पुरुषार्थ को जगाने की। ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया।

अपने कार्यकाल में सांसद निधि की पाई-पाई का सदुपयोग कर उन्होंने जनप्रतिनिधियों के समक्ष एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया। छह अक्टूबर, 2005 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने चित्रकूट के पटनी ग्राम में पहुंचकर उनके काम को देखा और उसकी न केवल सराहना की बल्कि वह भारत के जिस-जिस हिस्से में गए, वहां चित्रकूट मॉडल का जिक्र करना नहीं भूले। गांधी के ग्राम स्वराज्य की राह में नानाजी का काम मील का पत्थर साबित हुआ है। वास्तव में नानाजी का यह प्रयोग ही पं. दीनदयाल जी का व्यावहारिक ‘एकात्म मानव दर्शन’ है।

“सेवा और समर्पण” की प्रतिमूर्ति राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख

नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले में 11 अक्तूबर, 1916 को हुआ था। ‘मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं’, इस ध्येय वाक्य पर चलते हुए उन्होंने देश के कई ऐसे गांवों की तस्वीर बदल दी, जो विकास की मुख्य धारा से कोसों दूर थे। नानाजी ने अपनी कर्मभूमि भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को बनाया। बातचीत में वे अक्सर कहा करते थे कि जब अपने वनागमन के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं, तो हम प्रयास क्यों नहीं करते। इसलिए नानाजी जब पहली बार चित्रकूट आए तो फिर यहीं बस गए। उन्होंने चित्रकूट में सबसे पहले कृषि और शिक्षा के माध्यम से बदलाव की पहल की, ग्रामोदय विश्वविद्यालय उनकी अनुपम कृति में से एक है।

नानाजी ने चित्रकूट के उत्थान में कई कार्य किए। उन्होंने कृषि, शिक्षा, अनुसंधान, रोजगार, स्वास्थ्य और स्वावलम्बी बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र मे बहुत बड़ा कार्य किया है। दीनदयाल शोध संस्थान की अवधारणा उनमें से एक है। यह लोगो के समग्र विकास के उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया है ताकि उन्हें आत्मनिर्भर और आश्वस्त किया जा सके जिससे वे अपने अर्जित कौशल के माध्यम से अपनी आजीविका उत्पन्न कर सकें। साथ ही नानाजी ने ग्रामोदय के सपने को साकार करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों की स्थापना की। जिससे यहां कृषि के क्षेत्र में किसानों की आजीविका को सुदृढ़ किया जा सके। इसके साथ ही चित्रकूट में स्थापित सभी प्रकल्प पं दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानववाद’ पर सतत् सेवा कार्य में सुचारू रूप से कार्यरत हैं, जिनमें आजीवन स्वास्थ्य संवर्धन प्रकल्प आरोग्यधाम, उद्यमिता विद्यापीठ, गुरुकुल संकुल, गौशाला, रसशाला, जन शिक्षण संस्थान एवं शैक्षणिक प्रकल्प शामिल हैं।

 

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