लखनऊ। एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग से जीवाणु के जीनोम (अनुवांशिक पदार्थ) में म्युटेशन द्वारा बने जीवाणु के रूपों का विकास होने से फिर ये एंटीबायोटिक दवाइयां बेकार हो जाती हैं, इसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध कहते है। इसलिए, वर्तमान समय में, टीबी सहित कई बीमारियों के उपचार में रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक नई चुनौती बन गया है।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ की गरिमा सिंह और डॉ. युसूफ अख्तर ने अपने शोध से जीवाणु के ऐसे ट्रांसपोर्टर प्रोटीन की कार्य विधि को स्पष्ट करने का प्रयास किया है, जो जीवाणु कोशिका में एंटीबायोटिक दवाओं को निकाल फेंकने में शामिल होते हैं। ये ट्रांसपोर्टर बैक्टीरिया में बहु-दवा प्रतिरोध पैदा कर रहे हैं। ये प्रोटीन जीवाणु प्लाज्मा झिल्ली पर वाहक/परिवहक के रूप में काम करते हैं, और जीवाणु कोशिका में अणुओं के आयात और निर्यात के लिए एक चैनल प्रदान करते हैं। इस शोध में विशेष रूप से माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से एक मल्टी ड्रग एफ्लेक्स ट्रांसपोर्टर प्रोटीन, आरवी-1634 की क्रिया के तंत्र का अध्ययन किया गया है।
डाक्टर युसुफ ने बताया कि पहले से उपलब्ध कुछ तथ्यों के आधार पर प्रोटीन के कार्य तंत्र का अध्ययन करके अंतराल को भरने की कोशिश की है। प्रारंभ में, प्रोटीन के लिए एक त्रि-आयामी संरचना और सब्सट्रेट बाइंडिंग साइट की भविष्यवाणी की गई थी। इसके बाद, इन लोगों ने साइटोप्लाज्मिक सिरे से पेरिप्लास्मिक सिरे तक जाने वाले संभावित परिवहन चैनल का पता लगाया है। यह अध्ययन एक लक्ष्य के रूप में ट्रांसपोर्टर प्रोटीन के खिलाफ नई दवाइयों के विकास में सहायक हो सकता है, जो प्रमुख रूप से रोगाणुरोधी-प्रतिरोध में शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि हमें नए चिकित्सा रणनीतियों के विकास के लिए बेहतर मॉलिक्यूलर जानकारियों की आवश्यकता है, जो दुनिया भर में टीबी को खत्म करने में वैज्ञानिकों की मदद करेगी। इसके अतिरिक्त, जमीनी स्तर पर, एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग के बारे में आम लोगों के बीच लापरवाही से बचने के जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना आज के समय की मांग है। ये संयुक्त प्रयास विश्व भर में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चलाये जा रहे ताज़ा अभियान, “टीबी समाप्त करने की रणनीति” के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेंगे।