नन्हीं बेटियों की हत्या से देवभूमि कलंकित

 

-सुखदेव सिंह-

अग्नि को साक्षी मानकर जन्म-जन्मांतर तक की कसमें खाने वाली महिला ने पति से बेवफाई करके अपने प्रेमी तक को भी दगा देने में कोई रियायत नहीं बरती। प्रेम प्रसंग में नाकाम रही उसी कलियुगी मां ने अपनी दो-तीन महीने की जुड़वां नन्हीं बच्चियों को मौत के घाट उतारकर देवभूमि को शर्मसार किया है। पुलिस ने इस मां के खिलाफ अपनी ही बेटियों की हत्या किए जाने का मामला दर्ज करके आगामी कार्रवाई शुरू कर दी है। फिलहाल यह कहना भी उचित नहीं होगा कि उन बेटियों की हत्या सिर्फ उनकी मां ने की, अलबत्ता अभी जांच जारी है। कुल मिलाकर इस तरह बेटियों की हत्या करना मानवता के ऊपर बहुत बड़ा कलंक है। हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में ऐसा जघन्य अपराध का मामला उजागर हुआ है। 35 वर्षीय एक महिला अपने पति को छोड़कर प्रेमी संग पड़ोसी राज्य में भाग गई थी। वहां प्रेमी संग भी उसकी नहीं जमी तो पुन: वह अपने पति के पास वापस लौटना चाहती थी, मगर इस बीच जुड़वां बेटियां उसके लिए बाधा समझी जाने लगी थीं। इस बीच उक्त प्रेमी को भी वह छोड़कर वापस हिमाचल प्रदेश ससुराल में लौट आई।

शनिवार सुबह सकोड़ी नामक पुल के नीचे बेटियों के मृत शव लोगों ने देखकर लोगों द्वारा पुलिस को सूचित किए जाने पर यह मामला उजागर हुआ है। हिमाचल प्रदेश में बेटियों के ऊपर इस तरह के अत्याचार किए जाने के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। पुलिस को ऐसे हत्या मामलों की जांच गहराई से करके हत्यारों को कड़ा सबक सिखाना चाहिए। पूत कपूत हो सकता है, मगर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती, ऐसा कहा जाता है। क्या फिर यही मान लिया जाए कि बेटियों की हत्या के पीछे कुछ लोग और भी परिवार के शामिल हो सकते हैं। मगर मंडी की इस घटना से मां शब्द की गरिमा भी धूमिल हुई है। मां 9 महीने अपने बच्चे को गर्भ में पालकर ही उसे जन्म देती है। एक मां का कर्ज अपनी संतान पर सबसे बड़ा होता है। संतान लाख कोशिश करके भी इस ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता है। मां को समाज ने अपनी संतान का सही पालनहार माना है। यही वजह है कि प्रत्येक वर्ष मदर डे मनाकर इस दिवस की खुशियां आपस में बांटी जाती हैं। मां ऐसी होती है जो स्वयं गीले बिस्तर पर सोती है और अपनी संतान को आंच तक आने नहीं देती है।

रात भर संतान का लालन-पालन करने वाली महिला को ही मां कहा गया है। बदलते दौर में मां शब्द के मायने ही बदल गए हैं। जीन्स की पेंट पहनने वाली माताएं कब अपनी संतान को कोख में रखकर दूध पिलाती होंगी? कलियुग की कुछेक माताओं की सुंदरता में कमी न आ जाए, इसलिए वे संतान को अपना दूध पिलाना मुनासिब नहीं समझती हैं। दूध ही नहीं पिलाना, बल्कि अब बच्चों को घर के अन्य सदस्यों सहित नौकरानी के साथ सुलाने का समय भी चल पड़ा है। बच्चों को अपने से अलग रखने वाली ऐसी माताएं क्या उनके साथ अपनापन पूरी तरह निभा पा रही हैं। माताओं और बच्चों में पहले की भांति प्यार देखने को नहीं मिलता है। आजकल की माताएं घर का कामकाज बड़ी मुश्किल से खत्म करके एकांत में स्मार्ट मोबाइल फोन पर व्यस्त रहना अधिक पसंद करती हैं। बचपन में अपने बच्चों को अलग रखने की वजह से युवा पीढ़ी अपने अभिभावकों की बुढ़ापे में लाठी नहीं बनती। नतीजतन बुजुर्ग लोग नारकीय जीवनयापन किए जाने के लिए मजबूर होकर रह जाते हैं। देवभूमि में अपराध की दर (16वां रैंक) दिनोंदिन अन्य राज्यों की भांति बढ़ती जा रही है। बलात्कार, चोरी, डकैती, लूटपाट, जालसाज़ी और अन्य आपराधिक घटनाओं से अब पहाड़ी राज्य को शांतिप्रिय कहना गलत होगा।

बलात्कार की शिकार गुडिय़ा के मामले को पुलिस आज दिन तक सुलझाने में कामयाब नहीं हो पाई है। अब नन्हीं बेटियों की मौत की गुत्थी से भी पर्दा जल्द उठ पाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है। इस तरह का अपराध जनता की नजरों में आने से खूब विरोध किया जा रहा है। मगर उन बेटियों का क्या कसूर जिन्हें बेटी समझकर कोख में ही मार दिया जा रहा है। लड़कों के मुकाबले लड़कियों के लिंग अनुपात में आजकल भारी कमी आ गई है। नतीजतन बड़े पैमाने पर भ्रूण हत्याओं का दौर भी जारी है। हम 21वीं सदी में बेशक दस्तक दे चुके हैं, मगर अधिकतर लोगों की सोच बेटियों के प्रति वही पुराने वाली है। बेटियां आसमान सहित ओलंपिक तक में मैडल जीतकर देश का नाम रौशन कर चुकी हैं। मगर हमारे समाज में आज भी लोग बेटियों को बेटों के मुकाबले कम समझने की गलतियां करते हैं। इसी वजह से मंडी जैसे जघन्य अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है। लिंग अनुपात की जांच बड़े स्तर पर की जा रही है और सरकारें इस पर लगाम कसने में नाकाम चल रही हैं। इस गोरखधंधे में संलिप्त लोग रोजाना लाखों रुपए बटोर करके मानवता को तार-तार करते जा रहे हैं। हमारे समाज में ही ऐसे लोग हैं जिनका काम ही इस गोरखधंधे में दलाली खाना है। हिमाचल प्रदेश के लोग लिंग जांच पड़ोसी राज्यों में जाकर करवा रहे हैं।

यही नहीं, इस जांच में बेटियों की पुष्टि होने के बाद उन्हें कोख में ही मार दिए जाने के हजारों रुपए लोग वसूल रहे हैं। आज दिन तक ऐसे कितने लोगों की जांच हुई, कोई पता नहीं। बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का अभियान पूरे देश में चल रहा है, जिसका लाभ जनता लेने के लिए प्रयासरत है। देवभूमि में इस तरह की घटना घटित होने से ऐसे अभियानों पर विपरीत असर पड़ता है। बेटा-बेटी एक समान समझे जाएं, इसीलिए ही इस अभियान का आगाज किया गया था। कन्या के जन्म को उत्सव की तरह मनाना इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है। इस अभियान की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को हुई जिसका मुख्य उद्देश्य बढ़ते लिंग अनुपात को रोकना भी था। योजना का ध्येय बेटियों का हरसंभव विकास किए जाने में उनकी मदद करना है। केंद्र सहित हिमाचल प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार भी बेटियों के लिए कई योजनाएं चलाए हुए है। बेटियों को जन्म से लेकर उनकी शादियों तक हर सुविधा मुहैया करवाई जा रही है। बेटियों की पढ़ाई में कोई अड़चन न आए, इसलिए उन्हें छात्रवृत्तियां दी जा रही हैं। यही नहीं, शादियों में भी उपहार स्वरूप हजारों रुपए दिए जाने की योजना तक बन चुकी है। कुल मिलाकर यह कहा जाए कि आज के दौर में बेटियों को बेटों से अधिक सुविधाएं मिल रही हैं तो ऐसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, मगर इसके बावजूद बेटियों की हत्याएं किया जाना कुछ लोगों की नकारात्मक सोच का नतीजा ही कहा जा सकता है। इस पर रोक लगनी चाहिए।

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