अभी कांग्रेस आगे

 

-सिद्वार्थ शंकर-

पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सोमवार को सीएम पद की शपथ ली। उनके साथ डिप्टी सीएम के तौर पर सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी ने भी शपथ ली। पंजाब में पहली बार दो डिप्टी सीएम बनाए गए हैं। चरणजीत चन्नी पंजाब के इतिहास में पहले दलित मुख्यमंत्री बने हैं। वहीं, जट्ट सिख कम्युनिटी से सुखजिंदर सिंह रंधावा और हिंदू नेता के तौर पर ओपी सोनी को डिप्टी सीएम बनाया गया है। पंजाब में 5 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में दलित वोट बैंक को साधने के लिए इसे कांग्रेस का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। पंजाब में 32 फीसदी दलित आबादी है। 117 में से 34 सीटें रिजर्व हैं। वहीं चन्नी भले ही दलित नेता हैं, लेकिन सिख समाज से हैं। इस लिहाज से कांग्रेस को इसका बड़ा सियासी लाभ मिल सकता है। खासकर, दलित लैंड कहे जाने वाले पंजाब के दोआबा एरिया में कांग्रेस का दबदबा बढ़ सकता है। हिंदू नेता ओपी सोनी को डिप्टी सीएम बनाने से कांग्रेस ने हिंदू वोट बैंक को भी साधने की कोशिश की है। यह इसलिए अहम है, क्योंकि हिंदू वोट बैंक हमेशा भाजपा के साथ जाता है। हालांकि कैप्टन की व्यक्तिगत छवि को देखते हुए कांग्रेस को इसका लाभ मिलता रहा है। अब कैप्टन सीएम की कुर्सी छोड़ चुके हैं, इसलिए सोनी के जरिए उस वोट बैंक को बनाए रखने की कोशिश है। जट्ट सिख कम्युनिटी नाराज न हो, इसलिए सुखजिंदर रंधावा को डिप्टी सीएम बनाया गया है। अब तक यही कम्युनिटी पंजाब को सीएम चेहरे देती रही है। यह वोट बैंक अकाली दल का माना जाता है। हालांकि 2017 में बेअदबी के मुद्दे पर यह छिटककर आम आदमी पार्टी की तरफ चला गया। रंधावा को मंत्रिमंडल गठित होने पर मजबूत प्रोफाइल दिया जा सकता है। इसके जरिए जट्ट सिख वोट बैंक में अपना शेयर सुनिश्चित किया जाएगा।
भाजपा ने दलित सीएम कहा तो कांग्रेस ने चरणजीत चन्नी को बना दिया। अकाली दल ने एक हिंदू व एक दलित को डिप्टी सीएम बनाने की बात कही थी। कांग्रेस ने हिंदू और जट्ट सिख को डिप्टी सीएम बनाकर उसका भी तोड़ निकाल लिया। अब पंजाब में सरकार बनाने के लिए नए समीकरण बन गए हैं। फिलहाल तो कांग्रेस ने विरोधियों की मुश्किलें खड़ी कर दी हैं, लेकिन एंटीइंकम्बेंसी और कैप्टन सरकार के साढ़े चार साल क काम का हिसाब तो जनता चुनाव में करेगी ही। पंथिक और जट सिखों की किसान राजनीति के लिए जाना जाने वाला पंजाब कांग्रेस के इस फैसले से सियासत के एक दूसरे दौर में पहुंच गया है। पंजाब के चुनाव में इस बार दलित मुख्यमंत्री का मुद्दा सबसे अहम होगा। एक तरह से कांग्रेस ने राज्य में पहली बार किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाकर अकाली बसपा गठबंधन को कमजोर किया है तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की बढ़त को भी रोकने की कोशिश की है। चरणजीत चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से नवजोत सिंह सिद्धू के लिए भी फिलहाल मुख्यमंत्री की कुर्सी दूर हो गई है। अब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस दलितों के बीच चन्नी का चेहरा लेकर वोट मांगेगी और अगर उसे 2022 में फिर बहुमत मिला तो दलित चन्नी को बदलना टेढ़ी खीर होगा। क्योंकि दलित को कुर्सी पर बिठाना जितना कठिन है आज की राजनीति में उसे बदलना उससे भी ज्यादा कठिन है। और अगर कांग्रेस ने ऐसा करने का दुस्साहस किया तो उसका खामियाजा उसे राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनावों तक में भुगतना पड़ सकता है। इसलिए भले ही कांग्रेस पंजाब में कहे कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते विधानसभा चुनावों में नवजोत सिंह सिद्धू का नेतृत्व होगा, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चरणजीत सिंह चन्नी के होने से जीत हार का श्रेय दोनों के ही हिस्से में होगा और नतीजों के बाद फैसले भी उसी हिसाब से होंगे।

 

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