पेरेंट्स की इन गलतियों का खामियाजा उठाना पड़ता है बच्चों को, तुरंत छोड़ दें ये आदतें

बच्‍चों की परवरिश करना कोई बच्‍चों का खेल नहीं है। एक अच्छा अभिभावक वह होता है जो बच्चे के हित में कोई भी फैसला लेने की कोशिश करता है। पेरेंट होने के नाते आपको बहुत ज्‍यादा संभलकर रहने की जरूरत होती है क्‍योंकि आपकी गलती की वजह से बच्‍चे को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। गलत पेरेंटिंग की वजह से बच्‍चों के मेंटल और फिजीकल हेल्‍थ पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसे ही प्रभावों के बारे में बता रहे हैं जो गलत पेरेंटिंग का नतीजा बन सकती हैं।

पैसों पर ध्‍यान न देना

बच्‍चों को बचपन से ही पैसों को खर्च करने और बचत पर ध्‍यान देने का स्किल सिखा देना जरूरी होता है। यह एक महत्‍वपूर्ण लाइफ स्किल है। इससे बच्‍चे बड़े होकर सही फाइनेंशियल निर्णय ले पाते हैं। लेकिन अगर आप बच्‍चों को पैसों का सही इस्‍तेमाल करना नहीं सिखाते हैं, तो इससे बच्‍चा सिर्फ खर्च करेगा और बचत से क्या फायदें होते है उसके बारे में नहीं समझ पाएगा। इससे उसका आने वाला समय खतरे में पड़ सकता है।

​नेगेटिव बॉडी इमेज

अगर आप लगातार बच्‍चे की खाने-पीने की आदतों को लेकर टोकते रहते हैं या फिर उसके शरीर की बनावट पर कमेंट करते र‍हते हैं तो ऐसा करना गलत है। आपकी यह आदत बच्चे के लिए घातक साबित हो सकती है. आपकी इस हरकत से बच्चा अपने लुक को लेकर असुरक्षित महसूस करने लगता है। इसकी बजाय आप बच्‍चे के मन में अपनी स्किन और बॉडी को लेकरकॉन्फिडेंट बनने के लिए मोटिवेट करें।

रोने देना है जरूरी

बच्‍चों के लिए कभी-कभी रोना भी जरूरी होता है। इससे बच्‍चों को खुलने और अपनी भावनाओं को खुलकर व्‍यक्‍त करने में मदद मिलती है। जब बच्‍चे को अच्‍छा महसूस नहीं होता है, तो वो इस तरह अपनी फीलिंग को जाहिर कर सकता है। लेकिन अगर आप अपने बेटे से ये कहते हैं कि लड़कियां रोती हैं और लड़कों को रोना शोभा नहीं देता है तो आप अपने बेटे पर मानसिक बोझ डाल रहे हो।

खाने से संबंधी समस्‍याएं

अगर आपका बच्‍चा खाने के समय नखरे दिखाता है या वो खाने में आनाकानी करता है, तो ऐसा नहीं है कि आप उसकी डिमांड को पूरा करते रहे। इससे बड़े होने पर बच्‍चे में कोई गंभीर ईटिंग विकार हो सकता है। कम उम्र से ही बच्चे में हेल्‍दी खाने की आदत डालें जिससे वो खुद भी हेल्‍दी रहे और उसकी ईटिंग हैबिट्स भी न खराब हों।

बच्‍चे को फेल होने दें

अमूमन हर पेरेंट अपने बच्‍चे को लेकर बहुत प्रोटे‍क्‍टिव होते हैं और उन्‍हें सिक्‍योर कर के चलने की कोशिश करते हैं जबकि बच्‍चे के लिए यह सही नहीं होता है। यह तो हम सभी जानते है कि इंसान अपनी गलतियों से ही सीखता हैं और उसी से हमें अनुभव मिलता है। इसलिए आप बच्चों को खुद फैसला लेने दे। ऐसा करना बच्चे के मानसिक विकास के लिए बेहद जरुरी है।

भावनाएं नहीं हैं जरूरी

कई बार बच्‍चे किसी बात को लेकर दुखी हो जाते हैं। ऐसे में बच्‍चों को खुश करने के लिए माता-पिता कह देते हैं कि ‘ये कोई बड़ी बात नहीं है’ या इसे लेकर ज्‍यादा दुखी होने की जरूरत नहीं है’। ऐसे में बच्‍चों को लगता है कि भावनाएं ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण नहीं होती हैं और इन्‍हें व्‍यक्‍त करने से बेहतर दबाना होता है। इसकी बजाय बच्‍चों को खुद से अपनी भावनाओं को संभालने और उनसे निपटना सिखाएं।

बच्चों की हर बात मानना

बच्‍चे जो कुछ भी मांगते हैं, हम उन्‍हें दिला देते हैं लेकिन एक रिसर्च की मानें तो इससे बच्‍चे मानसिक रूप से मजबूत जैसे कि खुद काे अनुशासन में रखने से चूक जाते हैं। आगे चलकर जो चीजें उन्‍हें नहीं मिल पाती हैं, उन्‍हें लेकर वो परेशान हो जाते हैं। बच्‍चों को फोन या कंप्‍यूटर देने की बजाय उनके साथ समय बिताएं। इससे आप अपने बच्‍चे के मन की इच्‍छाओं को समझ पाएंगे।

बच्‍चों को हमेशा कंफर्टेबल महसूस करवाना

ऐसी कई चीजें होंगीं जो बच्‍चों को असहज महसूस करवाती होती हों जैसे कि नया स्‍कूल या नए दोस्‍त या कुछ नया काम ट्राई करना। अगर आप अपने बच्‍चें को इन चीजों से बचा लेते हैं तो असल में आप उसे मानसिक रूप से कमजोर बना रहे हैं। अपने बच्‍चे को नई चीजें ट्राई करने के लिए प्रेरित करें।

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