तोक्यो। भारतीय रिकर्व तीरंदाज विवेक चिकारा और हरविंदर सिंह ने शुक्रवार को यहां पैरालंपिक खेलों की पुरूषों की ओपन वर्ग स्पर्धा में प्री क्वार्टरफाइनल में जगह सुनिश्चित की।
दुनिया के 23वें नंबर के खिलाड़ी सिंह ने इटली के स्टेफानो ट्राविसानी की चुनौती शूटआउट में 6-5 (10-7) से समाप्त की।
जकार्ता एशियाई खेलों 2018 की पैरा तीरंदाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले एथलीट बने सिंह ने 21वें वरीय के तौर पर क्वालीफाई किया था। वह तीसरे सेट में सात का निशाना लगाकर 4-0 की बढ़त गंवा बैठे लेकिन उन्होंने वापसी करते हुए 5-5 से बराबरी की और शूट ऑफ में पहुंचे।
हरियाणा के कैथल गांव के सिंह ने टाई ब्रेकर में परफेक्ट 10 का निशाना लगाकर इसमें जीत हासिल की जबकि प्रतिद्वंद्वी केवल सात का ही निशाना लगा सका।
अब उनका सामना रूस पैरालंपिक समिति के बाटो सिडेंडरझिएव से होगा।
मध्यम वर्ग किसान परिवार के सिंह जब डेढ़ साल के थे तो उन्हें डेंगू हो गया था और स्थानीय डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगाया जिसका प्रतिकूल असर पड़ा और तब से उनके पैरों ने ठीक से काम करना बंद कर दिया।
एशियाई पैरा चैम्पियनिशप 2019 के विजेता विवेक चिकारा रैंकिंग राउंड में शीर्ष 10 में रहे थे। उन्होंने श्रीलंका के सम्पत बंडारा मेगाहामूली गडारा को 6-2 से हराया और अंतिम 16 में उनका सामना ब्रिटेन के डेविड फिलिप्स से होगा।
दुनिया के 13वें नंबर के खिलाड़ी चिकारा का बायां पैर कृत्रिम है। एमबीए कर चुके चिकारा की शादी होने वाली थी लेकिन 2017 में नव वर्ष के दिन हुई दुर्घटना के बाद उनकी जिंदगी बदल गयी। मेरठ के इस खिलाड़ी की बाइक की एक ट्रक से टक्कर हो गयी जिसके बाद उनके बायें पैर को घुटने के नीचे से काटना पड़ा।
इसके बाद चिकारा ने एथेंस 2004 ओलंपियन सत्यदेव प्रसाद के मार्गदर्शन में तीरंदाजी करना शुरू किया और बैंकाक में स्वर्ण पदक जीता।
ओपन स्पर्धा में डब्ल्यू2 (व्हीलचेयर) और एसटी (खड़े होकर) क्लास दोनों के वो खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं जिनके पैरों में विकार हो और वे व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हों या उन्हें संतुलन की समस्या हो जिससे वे खड़े होकर या एक स्टूल पर पैर रखकर निशाना लगा सकते हों।
तीरंदाजी में सहायक उपकरण या एक सहायक के इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है लेकिन यह विकार पर निर्भर करता है। इसमें खिलाड़ी मुंह से भी निशाना लगा सकता है।
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