बच नहीं सकता यूएस

-सिद्वार्थ शंकर-

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन कह रहे हैं कि जो भी हालात हैं, उसके लिए अशरफ गनी से सवाल किया जाना चाहिए। एक बारगी उनकी बात सही भी है, मगर क्या इतना भर कह देने से उनकी जबावदेही बच जाती है। आज अफगानिस्तान को लेकर लगभग पूरी दुनिया में जिस तरह के हालात हैं, उसके लिए अमेरिका भी कम दोषी नहीं है। विदेशी मीडिया से लेकर तमाम मुल्कों में अमेरिका के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है। तालिबान द्वारा काबुल में प्रवेश के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी नागरिकों को बाहर निकालने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन व उनके अधिकारियों को संघर्ष करना पड़ रहा है। यह अमेरिका के लिए झटका माना जा रहा है। क्योंकि, जो बाइडेन व उनके अधिकारियों का अनुमान था कि अमेरिकी सैनिकों के वापस आने के बाद तालिबान को काबुल पर कब्जा जमाने में एक महीने से ज्यादा समय लगेगा। लेकिन, अफगान की सेना और सरकार बहुत जल्द ही हार गई।

अपने अनुमान को गलत मानते हुए अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि गर्मियों के अंत तक 2500 अमेरिका के सैनिक अफगानिस्तान से वापस आ जाएंगे। वहीं छह हजार सैनिक लोगों की मदद के लिए वहां रहेंगे। राज्य सचिव एंटनी ब्लिंकन का कहना है कि हमें नहीं लगा था कि अफगानिस्तान की सेना इतनी जल्दी हार जाएगी और देश की रक्षा नहीं कर पाएगी। बड़ी संख्या में अमेरिकी नागरिक अफगानिस्तान से सेना वापसी का समर्थन करते हैं। वहीं बाइडेन के अधिकारियों का भी मानना है कि पिछले 20 साल से अमेरिका पर बोझ बढ़ता जा रही है। लेकिन, युद्ध के बाद अफगानिस्तान में अराजक स्थिति बन रही है। क्योंकि, अब तालिबान, देश एक बड़े हिस्से को अपने नियंत्रण में बताता है। इसलिए राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए यह बड़ा राजनीतिक खतरा माना जा रहा है।

अमेरिकी कांग्रेस के कई सदस्यों ने प्रशासन से जवाब मांगा है कि कैसे उनका खुफिया तंत्र फेल हो गया और वे स्थिति का जमीनी आकलन नहीं कर पाए। रविवार को अफगानिस्तान से लोगों को निकालने के लिए चल रही बैठक में अधिकारियों को सांसदों के कठिन सवालों का सामना भी करना पड़ा। हाउस माइनॉरिटी लीडर केविन मैकार्थी ने रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन व ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मार्क मिले से पूछा कि यह सब इतनी जल्दी कैसे हो गया। उन्होंने कहा कि आप कहते हैं कि आपके पास क्या योजना थी। हम उन्हें हवाई सहायता नहीं दे पाए। किसी के पास अब इससे बाहर निकलने की योजना नहीं है। यह अमेरिका को भी गर्त में ले जाएगा। पिछले 20 वर्षों में तालिबान को लेकर अमेरिका ने जितने भी दावे-वादे किए हैं, उन सब की सच्चाई सामने आ गई है। अमेरिका के लिए यह स्थिति काफी जटिल है। अगर वह कोई बड़ा कदम नहीं उठाता है तो उसकी साख पर बट्टा लगना तय है। अमेरिकी सैनिकों ने 20 साल के संघर्ष के बाद सबसे बड़ी सैन्य चौकी बगराम एयर बेस पीछे छोड़ दिया है। जिसमें एनर्जी ड्रिंक से लेकर बख्तरबंद वाहनों, हेलीकॉप्टर, सैन्य वाहन, नागरिक वाहन, हथियार और गोला-बारूद तक हैं। हालांकि 984 सी-17 परिवहन विमान से भारी मात्रा में सामग्री देश से बाहर भी भेजी गई। जबकि अमेरिकी सैनिकों ने कुछ हथियारों को वापस ले जाने या इन्हें अफगानी सेना को सौंपने के बजाए बाबा मीर के विशाल कबाडख़ाने में टैंक, तोपखाने और अन्य हथियारों के टुकड़ों को नष्ट कर दिया। अंतराष्ट्रीय मीडिय रिपोट्र्स के मुताबिक अनुमान है कि अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान छोडऩे से पहले करीब 1500 से1700 उन सैन्य उपकरण नष्ट कर दिए जिन्हें वापस स्वदेश ले जाना संभव नहीं था। इसमें से 387 मिलियन पाउंड (176 मिलियन किलोग्राम) स्क्रैप पहले ही अफगान सरकार को 46.5 मिलियन डॉलर में बेचा जा चुका है। जबकि कुछ हथियार अफगान सैनिकों को सौंपे गए। ऐसे में सवाल उठा कि आखिर अमेरिका ने जो अफगानी सैनिकों को जो उपकरण और हथियार दिए, उसका क्या होगा। इसका जवाब तालिबान का सोशल मीडिया अकाउंट्स देखने पर साफ हो जाता है। अमेरिका का छोड़ा हुआ हथियार अब तालिबानियों के कब्जे में है। तालिबान का सोशल मीडिया अकाउंट्स तालिबान लड़ाकों के हथियारों के जखीरे को जब्त करने के वीडियो से भरा हुआ है। उत्तरी शहर कुंदुज में आत्मसमर्पण करने वाले अफगान सैनिकों के फुटेज में सेना के वाहनों को भारी हथियारों से लदे और विद्रोही रैंक और फ़ाइल के हाथों में सुरक्षित रूप से तोपखाने की तोपों से लैस दिखाया गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक तालिबानियों ने छोटी दूरी के 13 मोर्टार, 122-मिलीमीटर डी-30 के 17 हॉवित्जर जैसे घातक हथियारों पर कब्जा कर लिया है। जून के महीने में तालिबान ने दर्जनों बख्तरबंद वाहनों और 700 ट्रकों पर कब्जा कर लिया था।

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