Modi की ‘Wait and Watch Policy’ ने किया कमाल, Mohamed Muizzu का China से मोहभंग, Maldives वापस आया India के पाले में

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा केवल एक सामान्य कूटनीतिक दौरा नहीं है, बल्कि यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सामरिक रणनीति, ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति और चीन को संतुलित करने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है। साथ ही प्रधानमंत्री की मालदीव यात्रा से ठीक पहले भारत ने लक्षद्वीप को लेकर जो बड़ा फैसला किया उसके भी गहरे निहितार्थ हैं। वैसे चीन की गोद में जा बैठे मालीदव को भारत जिस तरह अपनी कूटनीति की बदौलत वापस अपने करीब ले आया वह हमारी विदेश नीति की एक बड़ी सफलता भी है। हम आपको याद दिला दें कि जब मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने खुलकर भारत विरोधी बयानबाजी की थी और भारत को ‘फौजी ताकत’ हटाने के नाम पर सीधे निशाना बनाया था, तब दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गये थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदली हैं और राष्ट्रपति मुइज्जू का रुख भी। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? और प्रधानमंत्री के इस दौरे का भारत के लिए क्या महत्व है?

देखा जाये तो मालदीव भले ही क्षेत्रफल में छोटा देश हो, लेकिन समुद्री भू-राजनीति में इसकी स्थिति बेहद अहम है। यह समुद्री रास्तों के उस हिस्से में पड़ता है, जहां से भारत का 80% से अधिक समुद्री व्यापार गुजरता है। भारत के लिए मालदीव की स्थिरता और उसकी मित्रता सामरिक दृष्टि से उतनी ही अहम है जितनी श्रीलंका या मॉरीशस की।

बीते वर्षों में मालदीव में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और कर्ज के जाल के जरिये प्रभाव बढ़ाने की कोशिश भारत के लिए चिंता का विषय रही है। अब प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा मालदीव को यह संदेश दे रही है कि भारत उसके दीर्घकालिक हितों के लिए कहीं ज्यादा भरोसेमंद और पड़ोसी के रूप में स्थायी है। हम आपको बता दें कि भारत मालदीव को तटरक्षक पोत, सैन्य प्रशिक्षण, निगरानी प्रणाली जैसी सुरक्षा मदद पहले ही दे रहा है। पीएम मोदी की यात्रा इस सहयोग को और मजबूत करेगी ताकि मालदीव किसी भी प्रकार के आतंकी या चीन समर्थित गतिविधियों का गढ़ न बने।

देखा जाये तो भारत से टकराव के चलते मुइज्जू सरकार को प्रत्यक्ष नुकसान भी उठाना पड़ा। भारतीय पर्यटक मालदीव के सबसे बड़े विदेशी पर्यटक वर्ग रहे हैं। भारत विरोधी बयानबाजी के बाद मालदीव के पर्यटन उद्योग को काफी नुकसान हुआ, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। पर्यटन के साथ भारत से व्यापार, निवेश और सहायता भी खतरे में पड़ने लगी। इसके बाद मुइज्जू को एहसास हुआ कि चीन सिर्फ कर्ज देगा, लेकिन सुरक्षा, मानव संसाधन, आपदा प्रबंधन जैसी वास्तविक जरूरतों में भारत जैसा सहयोग नहीं करेगा। चीन का ‘कर्ज जाल’ मालदीव को आर्थिक संकट में धकेल सकता है, इसका अंदेशा मुइज्जू को हो चुका है।

इसके अलावा, मालदीव के भीतर भी कई राजनीतिक दल और वर्ग मानते हैं कि भारत से टकराव करके देश की सुरक्षा और विकास खतरे में डाला जा रहा है। हाल के उप-चुनावों और सर्वे में जनता के भीतर भारत के प्रति सहानुभूति और मुइज्जू के फैसलों से असंतोष उभरा, इसलिए भी उन्हें रुख बदलना पड़ा। इसके अलावा, भारत ने कूटनीतिक रूप से संयम बरतते हुए, मुइज्जू सरकार से सीधे टकराव टालकर उसे समय दिया ताकि वह खुद ही अपनी गलती समझे। इससे मुइज्जू ने भी अपनी गलती को ‘फेस सेविंग’ के साथ सुधारने का अवसर देखा और पीएम मोदी के दौरे को स्वीकार कर लिया।

 

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