जानिए आखिर कैसे एक गरीब लड़की बनी प्रदेश की सीएम

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिद और जुनून की एक जीती जागती मिसाल हैं। जिस कम्युनिस्ट सरकार की पुलिस ने कभी ममता को कोलकाता के धर्मतला चौराहे पर लाठियों से पीटा था, उसी लगातार 34 साल से सत्ता पर काबिज पर सरकार को बंगाल की सत्ता से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया तो पूरा कर ही दम लिया। आज उन्हीं ममता बनर्जी का जन्मदिन है। जब 1984 में ममता पहली बार कलकत्ता दक्षिण सीट से जीत कर लोकसभा पहुंचीं। तब वह आठवीं लोकसभा में देश की सबसे उम्र की सांसद थीं।

ममता बनर्जी या ममता बंद्योपाध्याय का जन्म कलकत्ता के एक गरीब घर में पांच जनवरी 1955 को हुआ था। बंद्योपाध्याय को बांग्ला में बनर्जी ही लिखा, पढ़ा और कहा जाता है। तब भला किसको पता था कि गरीब परिवार में जन्मी यह बच्ची एक दिन इतिहास रचेगी। 34 सालों से बंगाल की सत्ता पर काबिज वाम दलों को बाहर का रास्ता दिखा देगी। पर ऐसा हुआ, जिसके लिए ममता बनर्जी को काफी संघर्ष करना पड़ा तो तकलीफें भी खूब झेलीं। जब वे ममता बनर्जी 17 साल की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया। घर की माली हालत इतनी खराब थी कि उनको ढंग से इलाज भी नहीं मिल पाया था।

इतनी सभी मुसीबतों के बीच में घर की पूरी जिम्मेदारी ममता के कंधों पर आ गई तो उन्होंने बूथ पर दूध तक बेचा पर हार नहीं मानीदीदी के नाम से विख्यात ममता ने कलकत्ता के योगमाया देवी कॉलेज से स्नातक की शिक्षा। इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामिक इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। इसके बाद योगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री भी हासिल की।

सबसे कम उम्र में चुनी गईं सांसद

ममता की बेहद कम उम्र में रुचि राजनीति में हुई तो वे उस दौर की सबसे बड़ी कांग्रेस पार्टी से जुड़ गईं। पहले वे महिला कांग्रेस और फिर अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की महासचिव बनाई गईं। 1975 में उनको पश्चिम बंगाल में इंदिरा कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। 1978 में वह कलकत्ता दक्षिण जिला कांग्रेस कमेटी की सचिव चुनी गईं। 1984 में ममता पहली बार कलकत्ता दक्षिण सीट से जीत कर लोकसभा पहुंचीं। तब आठवीं लोकसभा में वह देश की सबसे उम्र की सांसद थीं।

ममता दोबारा वर्ष 1991 में सांसद बनीं तो उन्हें केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद ममता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1996 में फिर लोकसभा पहुंचीं, हालांकि, 1997 में कांग्रेस से उनकी राह जुदा हो गई और उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के नाम से अपनी नई पार्टी बना ली, जो आज बंगाल में पूरी मजबूती के साथ सरकार चला रही है।

हो चुका है जानलेवा हमला

उनका राजनीति में आने का एक ही लक्ष्य था, कई दशकों से बंगाल की सत्ता पर काबिज वाम दलों को उखाड़ फेंकना। इसके लिए संघर्ष के दौरान साल 16 अगस्त 1990 को उन पर जानलेवा हमला हुआ, जिसके कारण एक महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। साल 1993 में ममता बनर्जी ने फोटो युक्त वोटर आईडी की मांग कर दी और कलकत्ता में स्थित बंगाल सरकार के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग की ओर मोर्चा निकाल रही थीं, तभी पुलिस से झड़प हो गई पुलिस ने गोलीबारी कर दी, जिसमें ममता के साथ संघर्ष कर रहे 14 लोगों की मौत हो गई थी। खुद ममता बनर्जी बुरी तरह से घायल हुई थीं।

अटल सरकार में बनीं पहली महिला रेल मंत्री

ममता बनर्जी ने पीवी नरसिंहा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। तृणमूल कांग्रेस का भाजपा के साथ गठबंधन होने पर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें रेल मंत्री बनाया गया। वह भारत में रेल मंत्री बनने वाली पहली महिला सांसद हैं। उनका प्रभाव पूरी दुनिया पर इस कदर छाया कि 2012 में द टाइम मैगजीन ने ममता का नाम सौ सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में रखा था। एक्सप्रेस ट्रेनों में सर्विसेज बढ़ाने से लेकर IRCTC तक की स्थापना में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।

बंगाल से वाम दलों का शासन किया समाप्त

बंगाल में माकपा के मुख्यमंत्री थे बुद्धदेव भट्टाचार्य, जो अपनी विकासवादी नीतियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने बंगाल में औद्योगिकरण का नया दौर शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने बंगाल में नंदीग्राम के पास सिंगूर में टाटा की लखटकिया कार नैनो के उत्पादन के लिए जमीन का अधिग्रहण किया था। ममता ने किसानों से जबरन जमीन लेने का आरोप लगाकर आंदोलन शुरू कर दिया, जो इतना प्रभावी रहा कि टाटा को अपना कारखाना ही शिफ्ट करना पड़ा और ममता बंगाल की नई पहचान के रूप में सामने आईं।

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