नई दिल्ली: मलेरिया बारिश के दिनों में अपने पैर पसार लेता है. हालांकि ठंड और गर्मी में भी ये आम लोगों पर प्रहार करने से पीछे नहीं हटता. दरअसल गंदगी वाले क्षेत्रों और नमी वाले इलाकों में ये बहुत तेजी से फैलता है. ऐसे इलाकों में लोगों की अनदेखी के चलते भी उन्हें इसका खामियाजा उठाना पड़ता है.
दुनिया भर में कई देश इससे लड़ रहे हैं. हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट की मानें तो मलेरिया के मामलों में 2015 के बाद 55 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, लेकिन अब भी स्वास्थ्य समस्याओं के लिहाज से भारत के लिए ये एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.
क्या कहती है रिपोर्ट?
विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2023 के अनुसार, साल 2022 में दुनियाभर में मलेरिया के 249 मिलियन यानी 24 करोड़ 90 लाख अधिक मरीज सामने आए हैं. वैश्विक स्तर पर नजर डालें तो 29 देशों में मलेरिया के 95 प्रतिशत मामले हैं.
इनमें से नाइजीरिया (27%), कांगो (12%), युगांडा (5%) और मोजाम्बिक (4%) मामलों के साथ मलेरिया के आधे मामलों के लिए जिम्मेदार हैं.
भारत के लिए क्यों अब भी बड़ी चुनौती है मलेरिया?
ड्ब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में एशिया के दक्षिण पूर्व में मलेरिया के सबसे ज्यादा मामले भारत में दर्ज किए गए थे. जिसके लिए प्लाज़्मोडियम विवैक्स सबसे बड़ा जिम्मेदार है.
दरअसल मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो संक्रमित मच्छरों द्वारा व्यक्ति को होने वाली बीमारी है. इस बीमारी के मच्छर जमे हुए पानी, गंदगी और नमी में पनपते हैं. वहीं इस बीमारी में एक प्रोटोजोआ परजीवी प्लाज्मोडियम विवैक्स शरीर के अंदर जाता है जो इंसान को कोमा में ले जाने से लेकर उसकी मौत तक का कारण बन सकता है. भारत में मलेरिया के 46 प्रतिशत मामलों में यही परजीवी जिम्मेदार है.
रिपोर्ट के अनुसार 2015 के बाद से मलेरिया के मामलो में कमी तो दर्ज की गई है लेकिन भारत के लिए अब भी ये चिंता का विषय है, क्योंकि दक्षिण पूर्व एशिया में मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में 94 प्रतिशत मौतें भारत और इंडोनेशिया में दर्ज की जाती हैं.
हालांकि पिछले दो दशकों पर नजर डालें तो भारत सहित भारत ने कुछ हद तक मलेरिया पर काबू पाया है और साल 2000 के बाद से इससे होने वाली मौतों में कमी दर्ज की गई है.
मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित देश
डब्ल्यूएचओ ने 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से मलेरिया से मरने वाले लोगों की संख्या के वैश्विक रिकॉर्ड पेश किया है. इस रिकॉर्ड के अनुसार, 2000 और 2015 के बीच वैश्विक मृत्यु दर में लगभग 55% कमी दर्ज की गई. जहां साल 2000 में मलेरिया से 8,96,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी वहीं 2015 में ये आंकड़ा 5,62,000 था.
दुनिया भर के देशों में मलेरिया से सबसे ज्यादा पीड़ित महाद्वीप पर नजर डालें तो अफ्रीका का नाम सामने आता है. अफ्रीका मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित है. 2019 में मलेरिया से होने वाली वैश्विक मौतों का 96% अफ्रीकी महाद्वीप में ही दर्ज हुआ था. यहां साल 2000 के बाद से मौतों में काफी गिरावट आई है, लेकिन दुनियाभर के देशों के मुकाबले अब भी मलेरिया से पीड़ित और मरने वालों की संख्या यहीं ज्यादा है.
क्या कहते हैं आईएचएमई के आंकड़े?
इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) ने भी साल 1990 के बाद से मलेरिया से होने वाली मौतों की रिपोर्ट पेश की थी. जिसके अनुसार 1990 में इससे मरने वालों की संख्या लगभग 8,50,000 तक बढ़ी थी. वहीं 2004 में ये आंकड़ा लगभग 9,65,000 पर पहुंच गया. जिसके बाद 2019 में मलेरिया के मामलों में लगभग 6,50,000 तक गिरावट दर्ज की गई. ये आंकड़े डब्ल्यूएचओ के मुकाबले काफी अधिक हैं.
उम्र के आधार पर मलेरिया से होती है मौत?
वैश्विक स्तर पर मलेरिया से होने वाली मौतों के लिए सबसे कमजोर आयु वर्ग 5 साल से कम उम्र के बच्चे हैं. 2019 में 5 साल के बच्चों के बीच मलेरिया से होने वाली मौतें 55 प्रतिशत थी. इससे बच्चों के अधिक संक्रमित होने की संभावना होती है.
मलेरिया के प्रकार
मलेरिया का बुखार पांच प्रकार का होता है. पहला प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, दूसरा सोडियम विवैक्स, तीसरा प्लाज्मोडियम ओवेल मलेरिया, चौथा प्लास्मोजियम मलेरिया तथा पांचवा प्लास्मोडियम नोलेसी.
प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम इससे पीड़ित व्यक्ति बेसुध हो जाता है. इस बुखार में लगातार उल्टियां होने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है. वहीं सोडियम विवैक्स इसमें मच्छर बिनाइल टर्शियन मलेरिया पैदा करता है, जो 48 घटों के बाद अपना असर दिखाना शुरू करता है. प्लाज्मोडियम ओवेल मलेरिया ये एक प्रकास का प्रोटोजोआ होता है जो बेनाइन मलेरिया के लिए जिम्मेदार होता है. इस रोग में क्वार्टन मलेरिया पैदा होता है जिससे मरीज को हर चौथे दिन बुखार आता है. इससे पीड़ति के शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाती है और सूजन आ जाती है.
मलेरिया के लक्षण
आमतौर पर मलेरिया संक्रमित मादा मच्छर के काटने से फैलता है. मलेरिया लाल रक्त कोशिकाओं का संक्रमण है जिसमें प्लाज्मोडियम की पांच प्रजातियों में से एक प्रोटोजोआ है. मलेरिया से बुखार, ठंड लगना, पसीना, बीमारी (मेलेइस) की सामान्य भावना और कभी-कभी दस्त, पेट दर्द, सांस लेने में तकलीफ, भ्रम और सीजर्स जैसे लक्षण होते हैं.