अलीगढ़: गांव, जहां मेहमानों के साथ बारातियों को भी लाने पड़ते है दो जोड़ी कपड़े

द ब्लाट न्यूज़

  • कीचड़ से भरे बदहाल रास्तों पर पैदल जाते हुए बराती-घराती देते हैं ग्रामीणों को गालियां: बोली राजप्यारी
  • कीचड़ भरे रास्ते पर रिश्तेदारों के गिरने से होती है ग्रामीणों के साथ रिश्तेदार की बेज्जती: बोली महिलाएं
  • बदहाल रास्तों पर पैदल चढ़ती है लड़कियों की बारात,कोई भी लड़का घोड़ी चढ़कर नहीं ले जा सका बारात
  • विकास की गंगा से कोसों दूर है बरला गांव,नहीं बही सदियों बाद भी विकास की गंगा,,विकास की गंगा को तरस नरकीय जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण

गांव देहातों के विकास को लेकर सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन बावजूद इसके अलीगढ़ जिले की तहसील अतरौली क्षेत्र में जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बरला एक ऐसा बदहाल गांव है। जिसकी कुछ ऐसी तस्वीरें आज हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। जहां विकास की गंगा ना बहने के चलते गांव में आने वाले मेहमानों सहित बारातियों को गांव में घुसने से पहले 2 जोड़ी कपड़े अपने साथ लाने पड़ते हैं। विकास की गंगा खुद इन तस्वीरों में विकास को ढूंढ रहा है कि आखिर विकास है कहां? गांव की इन बदहाल तस्वीरों को देखने के बाद आप भी विकास को ढूंढते हुए नजर आएंगे। वही ग्रामीणों की माने तो ग्रामीण आज भी उस विकास को ढूंढ रहे है। जिस विकास की गंगा पूरे देश में बह रही है। वही कहते हैं देश की खुशहाली का रास्ता गांव से ही होकर गुजरता है।

आपको बता दें कि अलीगढ़ जिले की तहसील अतरौली क्षेत्र के बरला गांव में ग्राम प्रधान के द्वारा अपने गांव में विकास की गंगा न बहाने के चलते लोगों का बदबूदार रास्तों के बीच रहकर जीना दूभर हो गया। यही कारण है कि गुरुवार को आक्रोशित ग्रामीणों द्वारा ग्राम प्रधान के विकास कार्य नहीं कराए जाने से नाखुश होते हुए हाथ खड़े कर विरोध प्रदर्शन किया गया। ग्राम प्रधान के खिलाफ लामबंद हुए ग्रामीणों का आरोप है कि मौजूदा ग्राम प्रधान के द्वारा जलभराव कीचड़ और गंदगी से लबालब भरे पड़े गांव के मुख्य मार्गों पर विकास का कोई भी कार्य नहीं कराया है। जिसके चलते बच्चों को स्कूल आने-जाने के साथ ही ग्रामीणों को भी गांव से बाहर आने जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार कीचड़ भरे रास्तों में स्कूल जाते वक्त बच्चे गिरकर घायल हुए हैं। तो वही बाइक लेकर पहुंचने वाले लोग भी कीचड़ भरे रास्तों पर बाइक फिसलने के चलते गिरकर घायल हुए हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि गांव के अंदर जब बेटियों की शादियां होती है। तो बारात लेकर आने वाले बाराती गांव के अंदर कीचड़ से भरे रास्तों पर अपनी बारात नहीं चढ़ा पाते हैं। वही गांव का कोई भी लड़का अपनी बारात घोड़ी पर चढ़कर नहीं ले जा सका है। ऐसे में बाराती और घरातियों को भी कीचड़ भरे रास्तों पर गुजर कर काफी कठिनाइयों का सामना करते हुए पैदल ही अपनी बारात चढ़ानी पड़ती है। कई बार पैदल बारात चढ़ाते हुए बाराती-घराती कीचड़ भरें रास्तों में गिरने के चलते कपडे कीचड़ से लबालब होते हुए चोटिल हो जाते हैं। वही बराती और घराती पैदल जाते हुए ग्रामीणों को देखकर उन्हें गालियां देते हुए जाते हैं।

वही विकास की गंगा से कोसों दूर बदहाल पड़े बरला गांव निवासी महिला राजप्यारी का कहना है कि गांव के मुख्य रास्ते पूरी तरह से जलभराव के बीच कीचड़ से भरे हुए खस्ताहाल पड़े हुए हैं। बारिश होने पर बरसात का पानी बदहाल रास्तों पर भरने के चलते गांव के मुख्य रास्तों पर गंदगी का अंबारलगा हुआ है। जिसके चलते ग्रामीणों को गांव के बाहर आने और जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गांव के मुख्य रास्ते बदहाल पड़े होने को लेकर जब ग्रामीणों के द्वारा मौजूदा ग्राम प्रधान से रास्ते सही कराने की बात की जाती है। तो मौजूदा ग्राम प्रधान ग्रामीणों से बोलता है कि उन्होंने चुनाव में उसको वोट नहीं दी। इसलिए रास्ते बनवाने की बात को भूल जाओ। अब ये रास्ते कभी नहीं बनेंगे।

वही महिला का कहना है कि जब गांव के अंदर राजनीतिक नेता विधायक, सांसद या अधिकारी आते हैं। तो उनसे भी कई बार गांव के टूटे फूटे कीचड़ से भरे रास्तों को बनवाने की मांग की। तो उनके द्वारा भी रास्ता बनवाने को लेकर ग्रामीणों को सिर्फ झूठा आश्वासन ही दिया।

राजप्यारी का कहना है कि जब गांव में किसी भी लड़की की शादी होती है, तो रास्ते पर पानी और गंदगी इकट्ठा होने के चलते बारात लेकर पहुंचने वाले बाराती अपनी बारात को भी गांव के अंदर नहीं चढ़ा पाते है। जिसके चलते किसी भी लड़की की बारात बदहाल रास्तों की वजह से गांव में नहीं चढ पाती है। वही गांव का कोई भी लड़का घोड़ी पर चढ़कर अपनी बारात नहीं ले जा सका हैं। जब लड़की की शादी होने पर बराती जब अपनी बारात लेकर गांव आते हैं। तो बाराती-घराती गांव के अंदर कीचड़ भरे रास्तों पर पैदल जाते हुए ग्रामीणों को गालियां देते हुए जाते है। ऐसे में गांव आने वाले बाराती-घराती लोग कोई अपने साथ एक जोड़ी कपड़े तो कोई दो जोड़ी कपड़े ही अपने साथ में लेकर आते हैं। ऐसे में पैदल बारात चढ़ाते हुए अगर गांव के कीचड़ भरे रास्तों पर बराती-घराती गिर जाता है। तो पैदल बारात चढ़त के दौरान कीचड़ में गिरने से उस रिश्तेदार की भी बेइज्जती होती है, तो वही रिश्तेदार के कीचड़ में गिरने से पूरे गांव के लोगों की भी उसमें बेइज्जती होती हैं।

वही बारिश के पानी से गांव के रास्ते पर होने वाले जलभराव ओर कीचड़ से ग्रामीणों को अपने खेतों में और गांव से बाहर आने जाने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जिसके चलते वह अपने पशुओं के लिए भी खेतों से चारा नहीं लाने के चलते चारे की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं। वही गांव के रास्ते पर कीचड़ और जलभराव के चलते गांव आज भी बदहाल पड़ा हुआ है। जिन बदहाल पड़े रास्तों की वजह से ग्रामीणों की जिंदगी नर्क बनी हुई है। जिसके चलते ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। वही जब कोई जानकार रिश्तेदार आता है। तो वह पूरे गांव को घूमने के बाद गांव के मंदिर पर आकर निकलते हुए अपने रिश्तेदारों के घर पहुंचता है।

वही गांव के बदहाल रास्तों को लेकर मौजूदा ग्राम प्रधान के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले आक्रोशित ग्रामीणों का कहना है कि उनके द्वारा अनेकों बार विधायक, सांसद व ग्राम प्रधान सहित विकास खंड अधिकारी,जिला पंचायत से लेकर एसडीएम सहित जिले में बैठे जिले के सबसे बड़े मट्ठाधीश जिलाअधिकारी के सामने गांव के बदबूदार और कीचड़ से भरे रास्तों को लेकर अपनी फरियाद सभी के सामने रखी। लेकिन मौजूदा ग्राम प्रधान से लेकर विकास खंड अधिकारी, जिला पंचायत,एसडीएम और जिलाअधिकारी से लेकर गांव के अंदर कीचड़ गंदगी,बदबूदार और जलभराव से लबालब बदहाल खस्ताहाल पड़े रास्तों को लेकर की गई शिकायतों के बावजूद भी गांव में विकास की गंगा नहीं बहने के बीच किसी के भी कानों पर जूं नहीं रेंगी है।वही गांव के लोगों का कहना है कि वोट के समय सांसद विधायक आते हैं और गांव के लोगों को बरगला कर उनकी वोट तो ले जाते है पर गांव की समस्या का समाधान नहीं करते हैं।

यही कारण है कि मौजूदा ग्राम प्रधान के खिलाफ गांव के मुख्य रास्तों पर विकास कार्य नहीं कराए जाने को लेकर बिगुल फूंक चुके आक्रोशित ग्रामीण विकास की उस गंगा को ढूंढ रहे हैं। जिस विकास की दुहाई राजनेताओं द्वारा पूरे देश में दी जाती हैं। अब देखने वाली बात होगी कि आक्रोशित ग्रामीण आखिर कब तक विकास की गंगा बहने वाले उस विकास को ढूंढ पाते हुए अपने गांव का विकास कर पाते हैं या नहीं?

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