कीचड़ में होकर जाता श्मशान घाट का रास्ता,ऐसा है तालानगरी का ये शिवाला गांव

• चार कंधे भी नहीं हो रहे नसीब,बदहाल पड़ा शमशान का रास्ता, गंदे पानी व कीचड़ के बीच 4 कंधों की जगह 2 कंधों पर पहुंचती हैं अर्थी, वीडियो वायरल


अलीगढ़, संवाददाता। तहसील खैर क्षेत्र से 5 किलोमीटर दूर शिवाला गांव में बदहाल हालत में गंदे पानी ओर कीचड़ से भरे पड़े शमशान घाट के रास्ते को लेकर एक हैरान कर देने वाली सच्चाई सामने आई है। जहां शिवाला गांव के श्मशान घाट का रास्ता आज भी पूरी तरह से गंदे पानी से लबालब गंदगी और कीचड़ से भरा पड़ा हुआ है। जिसके चलते मोक्ष की प्राप्ति कर मरने के बाद मुर्दे को ग्रामीणों के चार कंधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं।

 

ग्रामीणों को आज भी चार कंधों की जगह दो कंधों पर पानी से लबालब कच्चे ओर कीचड़ से भरे पड़े रास्ते में गंदगी के बीच गुजरकर मुर्दे को श्मशान घाट तक ले जाना पड़ रहा है। ग्रामीणों के द्वारा चार कंधों की जगह दो कंधों पर गंदे पानी के बीच कीचड़ में गुजर कर मुर्दे को श्मशान घाट ले जाते हुए का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसके बाद बीडीसी का चुनाव जीतने के बाद गांव के श्मशान का रास्ता ठीक न होने के चलते शिवाला गांव के बीडीसी ने ब्लाक प्रमुख के पैर छूकर ब्लॉक प्रमुख से कहा कि उसको पैसे नहीं चाहिए। साथ ही बीडीसी ने ब्लॉक प्रमुख से पैसे के बदले उसने अपने गांव के बदहाल हालत में पड़े शमशान घाट के रास्ते को पूरी तरह से पक्का बनवाए जाने की मांग की गई।

कीचड़ से होकर शव को ले जाने को मजबूर स्थानीय लोग फ़ोटो : द ब्लाट
कीचड़ से होकर शव को ले जाने को मजबूर स्थानीय लोग फ़ोटो : द ब्लाट

आज हम आपको जनपद अलीगढ़ मुख्यालय की तहसील खैर क्षेत्र के शिवाला गांव के बदहाल हालत में पड़े श्मशान घाट के रास्ते से रूबरू कराने जा रहे हैं। इस श्मशान घाट के रास्ते को देखकर आप भी अपने दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर होने के साथ ही सोचने को मजबूर हो जाएंगे। क्योंकि मरने के बाद उस इंसान की अर्थी को श्मशान घाट पहुंचने के लिए लोगों के चार कंधों की जगह दो कंधे ही नसीब हो रहे हैं।आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के जनपद अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर तहसील खैर क्षेत्र ओर उस तहसील से करीब 5 किलोमीटर दूर शिवाला गांव ने उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विकास कार्यों की गांव के बाहर बने एक श्मशान घाट के बदहाल रास्ते पर जमा गंदगी और कीचड़ से लबालब पड़े रास्ते ने प्रदेश सरकार और सरकार के इन सरकारी रहनुमाओं एक बीडीसी ने पोल खोल कर रख दी है। सिस्टम की बदहाली के चलते लोगों को शव यात्रा निकालने के लिए भी गंदे पानी ओर कीचड़ से गुजरना पड़ता है।

न कोई रास्ता न कोई व्यवस्था
न कोई रास्ता न कोई व्यवस्था

ग्रामीणों का कहना है श्मशान घाट के रास्ते पर इकट्ठा हुए गंदे पानी ओर रास्ते पर इकट्ठा हुई कीचड़ की समस्या को लेकर कई बार ग्रामीणों के द्वारा ग्राम प्रधान से लेकर एसडीएम और जिले में बैठे अधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं। लेकिन अधिकारी इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि थोड़ी सी बरसात ओर लोगों के घरों से निकलने वाला गंदा पानी कई कई फुट बदहाल हालत में कच्चे पड़े श्मशान घाट के रास्ते पर भर जाता है। गांव से श्मशान घाट की तरफ जाने वाले रास्ते पर 12 महीने गंदा पानी और कीचड़ भरा रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि श्मशान घाट के रास्ते पर भरे पड़े गंदे पानी ओर कीचड़ की निकासी का प्रबंध नहीं किया गया।

इसके चलते आसपास की नाली का गंदा पानी भी इसी कच्चे पड़े श्मशान घाट के रास्ते पर आकर इकट्ठा हो जाता है। शिवाला गांव विकास के नाम पर खून के आंसू रोने को मजबूर है। यहां किसी की मृत्यु होने पर सड़क पर खड़े कई कई फुट पानी ओर कीचड़ में से होकर लोगों को गुजरना पड़ता है। गांव के एक व्यक्ति की मौत होने पर ग्रामीणों को उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। गांव के श्मशान घाट के कच्चे रास्ते में कई-कई फुट पानी ओर कीचड़ होने के चलते शव को गंदे पानी से ही श्मशान तक ले जाना पड़ता है।

 

वही शिवाला गांव निवासी रामकिशन का कहना है कि उसके द्वारा पिछले 2 वर्षों से ग्राम प्रधान से लेकर तहसील खैर एसडीएम और जिले के उच्च अधिकारियों को गांव के बदहाल हालत में पड़े शमशान के रास्ते को लेकर तहसील दिवस समाधान दिवस थाना दिवस में कई बार लिखित में शिकायत दी गई। लेकिन बावजूद इसके बदहाल हालत में पड़ा शमशान का रास्ता पक्का नहीं बना है। साथ ही रामकिशन का कहना है कि ग्रामीणों ने गांव के कच्चे पड़े शमशान के रास्ते को बनवाने के लिए उन्होंने बीडीसी चुनाव में सुभाष को जीत दिलाई थी। लेकिन उसके बाद भी शमशान के रास्ते को लेकर ग्रामीणों की कोई सुनवाई कहीं पर भी नहीं हुई। साथ ही कहा कि श्मशान घाट के कच्चे रास्ते पर कीचड़ और पानी भरा होने के चलते गांव के अंदर मौत होने के बाद ग्रामीणों को चार कंधों की जगह दो कंधों पर गंदे पानी और कीचड़ में गुजरकर ही अर्थी को श्मशान घाट ले जाना पड़ता है।

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