म्यांमार में परमाणु रिएक्टर लगाने में रूस करेगा मदद, दोनों देशों में हुआ करार

द ब्लाट न्यूज़ म्यांमार परमाणु रिएक्टर लगाने की तैयारी में है। इसके लिए उसने रूस में निर्मित छोटे मॉड्यूलर न्यूक्लीयर रिएक्टरों को देश में लगाने की योजना बनाई है।

 

 

म्यांमार इस समय ऊर्जा के गहरे संकट में फंसा हुआ है। सैनिक शासन के अधिकारियों को उम्मीद है कि रूस की मदद से वे इस संकट का हल निकालने की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।

वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम में छपी एक खास रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार के बिजली मंत्रालय और रूस की परमाणु ऊर्जा कंपनी रोसेतॉम के बीच नवंबर के आखिर में इस बारे में एक करार पर दस्तखत हुए। फिलहाल सहमति संबंधित परियोजनाओं की संभावना का अध्ययन कराने पर हुई है। जानकारों के मुताबिक ऐसे मॉड्यूलर रिएक्टरों के जरिए आम तौर पर एक हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है। इस तकनीक में दुनिया में रूस को अग्रणी माना जाता है। समझा जाता है कि ऐसे रिएक्टरों के जरिए बिजली उत्पादन में वह अमेरिका से भी आगे निकल गया है।

वेबसाइट निक्कई एशिया के मुताबिक म्यांमार में मॉड्यूलर रिएक्टर लगाने की संभावना का अध्ययन कराने के लिए एक समझौता एटोमेक्सपो इंटरनेशनल फोरम (परमाणु ऊर्जा प्रदर्शनी) के आयोजन के दौरान हुआ। इस वर्ष यह आयोजन रूस के सोची में हुआ। वहां म्यांमार के बिजली मंत्री और विज्ञान और तकनीक मंत्री गए थे।

एटोमेक्सपो में भाग लेने के पहले म्यांमार के दोनों मंत्रियों ने मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग का दौरा किया। वहां लगे परमाणु रिएक्टरों को उन्होंने देखा। इसके पहले नवंबर के मध्य में यंगून में रोसेतॉम और म्यांमार सरकार के अधिकारियों की मुलाकात हुई थी। उसमें दोनों देशों के बीच परमाणु टेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन सेंटर का गठन करने पर सहमति बनी थी।

विश्लेषकों के मुताबिक म्यांमार का सैनिक शासन देश को परमाणु ऊर्जा संपन्न बनाने की आक्रामक रणनीति अपनाए हुए है। म्यांमार सेना के प्रवक्ता जॉव मिन तुन ने बीते सितंबर में कहा था- ‘हम कुछ वर्षों के अंदर ही छोटे आकार के परमाणु रिएक्टरों का निर्माण करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।’ इसी मकसद से सैनिक तानाशाह जनरल मिन आंग हलायंग ने इस वर्ष जुलाई और सितंबर में रूस की यात्रा की। उनकी दोनों यात्राओं के मौकों पर रोसेतॉम के साथ समझौते हुए। जुलाई में कर्मचारियों की ट्रेनिंग और परमाणु ऊर्जा के बारे में जागरूकता लाने के मकसद से समझौते हुए थे। सितंबर असैनिक मकसदों के लिए परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की तैयारी के लिए करार हुआ।

म्यांमार में बिजली का प्रमुख स्रोत अभी पनबिजली परियोजनाएं हैं। लेकिन पुरानी पड़ रही ये परियोजनाएं अब देश की जरूरत को पूरा करने में अक्षम हो गई हैं। म्यांमार के पास प्राकृतिक गैस का समृद्ध भंडार है। इसका इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए होता है। लेकिन इससे भी जरूरत पूरी नहीं हो रही है। इसकी वजह यह है कि देश में बिजली की मांग बढ़ती जा रही है। जनरल हलांयग ने देश में बिजली से चलने वाले वाहनों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य घोषित किया है।

उधर रोसेतॉम अपने छोटे परमाणु रिएक्टरों की मार्केटिंग आक्रामक ढंग से कर रहा है। अफ्रीका और एशिया में उसने इन्हें लगाने के लिए कई समझौते किए हैं। जिन देशों से उसका करार हुआ है, उनमें इंडोनेशिया और फिलीपींस शामिल हैं। अब म्यांमार भी इसका हिस्सा बन गया है।

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