महर्षि अरविन्द एक महान योगी और दार्शनिक थे : सुरेश त्रिपाठी

-ज्वाला देवी में महान दार्शनिक महर्षि अरविन्द जयंती की पूर्व संध्या पर नमन

प्रयागराज । प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) शिक्षा प्रसार समिति द्वारा संचालित ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इण्टर कालेज में महान दार्शनिक अरविन्द घोष के जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें नमन किया गया। समाजिक विषय के आचार्य सुरेश चन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि महर्षि अरविन्द एक महान योगी और दार्शनिक थे। उनका पूरे विश्व में दर्शनशास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है। उन्होंने जहां वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर टीका लिखी, वहीं योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे।

उन्होंने कहा, बंगाल के महान क्रांतिकारियों में से एक तथा देश की आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी महर्षि अरविन्द घोष थे। उन्हीं के आह्वान पर हजारों बंगाली युवकों ने देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया था। उन्होंने कहा क्रांतिकारी महर्षि अरविन्द के पिता के.डी घोष एक डॉक्टर तथा अंग्रेजों के प्रशंसक थे, लेकिन उनके चारों बेटे अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन गए। अरविन्द के ज्ञान तथा विचारों से प्रभावित होकर गायकवाड़ नरेश ने उन्हें बड़ौदा में अपने निजी सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया।

त्रिपाठी ने कहा बड़ौदा से कोलकाता आने के बाद महर्षि आजादी के आंदोलन में उतरे। उन्होंने 1902 में उनशीलन समिति ऑफ कलकत्ता की स्थापना में मदद की। उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ कांग्रेस के गरमपंथी धड़े की विचारधारा को बढ़ावा दिया। 1906 में जब बंग-भंग का आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर प्रस्थान किया। अरविन्द ने कहा था चाहे सरकार क्रांतिकारियों को जेल में बंद करे, फांसी दे या यातनाएं दे, पर हम यह सब सहन करेंगे और यह स्वतंत्रता का आंदोलन कभी रुकेगा नहीं। एक दिन अवश्य आएगा, जब अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़कर जाना होगा।

विद्यालय के प्रधानाचार्य विक्रम बहादुर सिंह परिहार ने बताया कि 5 दिसम्बर 1950 को महर्षि अरविन्द का देहांत हुआ। बताया जाता है कि निधन के बाद 4 दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंततः 9 दिसम्बर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गई। इस अवसर पर विद्यालय के समस्त आचार्य बन्धु उपस्थित रहें।

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