पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना और उत्तर 24 परगना जिलों में फैले सुंदरबन के तटीय क्षेत्र पर चक्रवात ‘दाना’ का खतरा मंडरा रहा था। लेकिन इस प्राकृतिक आपदा के प्रभाव को वहां के मैंग्रोव जंगलों ने एक प्राकृतिक अवरोधक की तरह काम करते हुए काफी हद तक कम कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मैंग्रोव बेल्ट ने चक्रवात की गति को धीमा किया और समुद्री लहरों की ऊर्जा को अवशोषित करते हुए तटीय समुदायों को सुरक्षा प्रदान किया।
पर्यावरणविदों के अनुसार, मैंग्रोव बेल्ट ने न केवल हवा की गति को कम किया बल्कि तटरेखा को भी स्थिर बनाए रखा। इसके अलावा, इन पेड़ों की जड़ें मिट्टी को मजबूती से पकड़कर कटाव को रोकती हैं। मैंग्रोव जंगलों ने कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी कम किया है।
पर्यावरण कार्यकर्ता और ग्रीन-टेक्नोलॉजिस्ट सोमेंद्र मोहन घोष बताते हैं कि मैंग्रोव जंगलों की घनी वनस्पतियां हवा की गति को धीमा करती हैं, जिससे चक्रवात का असर कम हो जाता है। इसके साथ ही मैंग्रोव वनों का ‘जल अवरोधन’ और ‘जल शोधन’ में भी बड़ा योगदान है। जल अवरोधन के जरिए ये लहरों की ऊर्जा को कम कर देते हैं और जल शोधन के माध्यम से गंदगी, अतिरिक्त लवण और प्रदूषकों को दूर करते हैं।
यह समझते हुए कि पश्चिम बंगाल का सुंदरबन क्षेत्र लगातार चक्रवाती तूफानों की चपेट में रहता है, 2007 में ‘नेचर एनवायरनमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसाइटी’ ने चक्रवातों से स्थायी सुरक्षा प्रदान करने के लिए मैंग्रोव वनों को बढ़ावा देने का एक बड़ा अभियान शुरू किया। ‘प्रोजेक्ट ग्रीन वॉरियर्स’ नामक इस परियोजना में स्थानीय महिलाओं को शामिल किया गया, जो सुंदरबन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मैंग्रोव वनों का संवर्धन कर रही हैं।
इस परियोजना की शुरुआत 2007 में डुलकी-सोंगांव, अमलामेठी और मथुराखांडा नामक तीन छोटे गांवों में लगभग 50 हेक्टेयर भूमि से हुई। इसके बाद मई 2009 में आए चक्रवात ‘आइला’ के दौरान देखा गया कि जिन इलाकों में मैंग्रोव वनों का संवर्धन किया गया था, वे पूरी तरह सुरक्षित रहे जबकि बाकी क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए। यह घटना इस परियोजना के लिए एक प्रेरणा बन गई। 2010 से 2015 के बीच सोसाइटी ने स्थानीय 18 हजार महिलाओं को शामिल कर 4,600 हेक्टेयर भूमि पर फैले सुंदरबन के 183 गांवों में बड़े पैमाने पर मैंग्रोव वनों का संवर्धन किया।